________________ की उपमा दी गयी है। जिस प्रकार चक्र में बारह आरे (लकडी के डण्डे) होते हैं, उसी प्रकार कालचक्र के भी बारह आरे माने गये हैं। आरे का अर्थ विभाग समझना चाहिये। प्र.275. यह भी तो बताईये कि बारह आरे कौन-कौन से होते हैं? (1)सुषम-सुषम (2) सुषम (3) सुषमदुषम (4) दुषम-सुषम (5) दुषम (6) दुषम–दुषम। इसी नाम के छह आरे उत्सर्पिणी में होते हैं। परन्तु वे उल्टे क्रम से चलते हैं। सुषम यानि / सुख एवं दुषम यानि दुःख / प्र.276.अवसर्पिणी के प्रथम आरे में क्या-क्या होता है? उ. (1)सुषम-सुषम यानि अतिशय सुख का वातावरण। (2)काल-चार कोडाकोडी सागरोपम का / (3)तीन कोस की अवगाहना / (4)तीन पल्योपम की आयु / (5)राजा-प्रजा का व्यवहार नहीं होता है। सभी स्वतन्त्र जीवन जीते हैं। (6)सवारी का सर्वथा अभाव होता है। ___ मनुष्य पद-विहारी होते हैं। (7)सिंह, अजगर, सर्प, आदि हिंसक पशु किसी भी प्रकार का उपद्रव नहीं करते हैं। मक्खी, मच्छर, आदि शूद्र प्राणी नहीं होते हैं / (8)इस आरे में अत्यन्त रमणीय, सुखद एवं मनोरम वातावरण होता है। मिट्टी का स्वाद गुड़- शक्कर के समान मधुर होता है। काँटें बिल्कुल नहीं होते हैं। (9)सोना, चांदी, रत्न आदि का सद्भाव होता है पर लोग काम में नहीं लेते हैं। (10) मनुष्य अत्यन्त सरल, भद्रिक, मंदकषायी, शान्तिप्रिय एवं कलह रहित होते हैं। (11) उनका शरीर स्वस्थ एवं रोग मुक्त होता है। (12) वे तीन-तीन दिन के अन्तर से तुअर के दाने प्रमाण में भोजन फरते हैं। (13) नगर, दुकान, मकान आदि नहीं होते हैं। कल्पवृक्षों के नीचे लोग रहते हैं। वे कल्पवृक्ष विविध आकृति वाले सुन्दर, मनोहर एवं आरामदायक होते हैं। (14)असि-मसि-कृषि का कार्य नहीं होता है। दस प्रकार के कल्पवृक्षों से प्राप्त सामग्री से युगलिक मनुष्य शांति व आदरपूर्वक जीवन यापन करते हैं। (15) मृत्यु से छह मास पूर्व एक पुत्र-पुत्री युगल का जन्म होता है। उनपचास दिन के उपरान्त