SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 117
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी प्र.271. समय किसे कहते है? 7. दो पक्ष - एक मास उ. काल का वह अविभाज्य अंश जिसका 8. दो माह - एक ऋतु केवली के ज्ञान में भी विभाग नहीं हो 9. छह ऋतु - एक वर्ष सके, उसे समय कहते है। 10.पाँच वर्ष - एक युग एक दिन को चौबीस घंटों में, एक 11.70 लाख 56 हजार घण्टे को साठ मिनट में, एक मिनट करोड़ वर्ष - एक पूर्व को साठ सैकेण्ड में विभक्त किया जा 12.असंख्य वर्ष - एक पल्योपम सकता है पर समय को नहीं। 13.दस कोडा कोडी (1)एक पलक झपकाने में असंख्य पल्योपम - एक सागरोपम ___ समय बीत जाते हैं। 17. दस कोडा - एक उत्सर्पिणी (2)जीर्ण-शीर्ण कपड़े के दो टुकड़े कोडी अथवा एक कोई बलशाली करें तो उसे सागरोपम अवसर्पिणी लगभग एक सैकेण्ड जितना प्र.273. उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी किसे समय लगे। उस वस्त्र के कहते है? निकटतम दो धागों (तन्तुओं) के उ. * उत्सर्पिणी अर्थात् उन्नति -उत्कर्ष टूटने के बीच असंख्य समय का काल। व्यतीत हो जाते है। अवसर्पिणी अर्थात् अवनति-अपकर्ष प्र.272. जैन दर्शनानुसार काल को का काल। विवेचित कीजिये। जिस काल में आयुष्य, धन, बल, धर्म, 1. असंख्य समय- एक आवलिका सौंदर्य आदि बढते जाते हैं, वह 2. 24 मिनट - एक घड़ी उत्सर्पिणी और जिस काल में ये सभी 3. दो घड़ी - एक मुहूर्त क्रमशः हीन होते जाते हैं, वह 4. पन्द्रह मुहूर्त - एक दिन अवसर्पिणी कहलाती है। इन दोनों में (एक रात्रि) छह-छह आरे होते हैं। 5. एक दिन-रात- एक अहोरात्रि प्र.274.आरे से क्या अभिप्राय है? 6. पन्द्रह अहोरात्रि - एक पक्ष उ. जैन ग्रन्थों में काल को चक्र (पहिये) ************** 89 ******** *** *
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy