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________________ जगत क्या है? प्र.262. ब्रह्मा को विश्व निर्माता कहा 3. यदि कोई कहे कि ईश्वर जीवों को जाता है तो क्या यह संभव है? कर्म फल भुगताने के लिये यह सब उ. इस विश्व को न ब्रह्मा ने बनाया, न करता है तो यह भी उचित नहीं किसी अन्य ईश्वर ने। यह अनादि क्योंकि जब संसार था ही नहीं तो काल से स्वाभाविक रूप से चल रहा जीव ने कर्म कहाँ से किये? और है और अनन्त काल तक चलता जब कर्म नहीं किये तो उनका रहेगा। फल भुगतान कैसा? प्र.263. बहुधा सुना जाता है कि 4. यदि कहा जाये कि ईश्वर ने सोचा सर्वशक्तिमान ईश्वर ही जगत्कर्ता कि मैं अनेक हो जाऊं और जगत् है। क्या यह कथन न्याय संगत है? बनाकर मनोरंजन करूं तो यह भी उ. ईश्वर को जगत्कर्ता नहीं मानना उचित नहीं हैं क्योंकि ईश्वर के चाहिये क्योंकि ऐसा मानने में अनेक मन नहीं है और वह कोई अबोध दोष-आपत्तियाँ उपस्थित हो जाती बाल तो है नहीं कि उसे हैं जैसे1. यदि ईश्वर ने संसार को बनाया तो . खिलौना चाहिये। ईश्वर तो अपने किस साधन से बनाया क्योंकि आत्म गुणों में रमणता से आनंद साधन के बिना वस्तु का निर्माण प्राप्त करता है। असंभव है। कोई भी तन्तुवाय बिना 5. फिर ईश्वर ने ऐसे नास्तिक, चोर, धागे के वस्त्र का निर्माण नहीं कर व्याभिचारी, क्रोधी, मायावी लोगों सकता। से भरा संसार क्यों बनाया। यदि 2. यदि कहे कि प्रभु ने स्वयं ही जगत यह कहा जाये कि सभी अपने की रचना की है यानि स्वयं ही अपने कर्मों के अनुसार फल प्राप्त नारकी, तिर्यंच, मनुष्य और देव करते हैं, तो फिर ईश्वर को बना है तो फिर प्रश्न होता है कि जगत्कर्ता मानने की आवश्यकता ईश्वरत्व को छोडकर संसार रूप नहीं है। इससे स्पष्ट है कि सृष्टि धारण करके उसे दुःखमय जन्म अनादिकाल से अपने आप मरण, अशान्ति, तनाव और गतिमान है। पीडाओं के झमेले में पड़ने की क्या प्र.264.इससे तो ऐसा लगता है कि जैन जरूरत थी? धर्म ईश्वर की सत्ता नहीं मानताहै? **************** 86 ****** * ****
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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