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________________ सिरिउसहनाहचरिए ताई सिरिनाभिकुलगरस्स पुरओ उवाणिति / नाभिकुलगरो एसा रिसहनाहस्स धम्मपत्ती होउत्ति वियारित्ता नयणकइरवकोमुई तं गिण्हेइ / सक्ककयविवाहपत्यावो - एत्यंतरे इंदो ओहिनाणेण सामिणो विवाहसमयं नच्चा तत्थ समागच्छेइ, पहुस्स पायपंकयाई पणमिऊण सेवगो इव अग्गो ठाऊण सक्को कयंजली एवं विण्णवेइ-जो अन्नाणी नाणसागरं नाहं साऽभिप्पारण बुद्धीए य कज्जेसु पयहाविउं इच्छेज्जा सो हि उवहासपयं पावेइ, सामिणा महापसाएण सया पेकिखया ते च्चिय भिच्चा कयाइ वि किंचण सच्छंद पि जप्पंति, पहुस्स अभिप्पायं जाणिऊग जे वयंति ते चिय सेवगा कहिज्जंति। हे नाह ! अहं तु अभिप्पायं अगच्चा जं बवेमि, तत्थ अपसायं मा कुणम् / अहं मण्णेमि-भयवं गब्भवासाओ पारम्भ वि वीयरागो अन्नपुरिसत्थाणं अणवेक्खाए चउ- . स्थमोक्खपुरिसत्थाय तप्परो होज्जा / तह वि हे नाह ! लोगाणं ववहारमग्गो वि तुमए चिय मोक्खमग्गो इव सम्मं पयडाविस्सए / तम्हा लोगववहाराय तुमए विहिज्जमाणं पाणिग्गहणमहूसवं इच्छामि, सामि ! पसीअसु / हे विहु ! भुवणभूसणाओ नियाणुरूवाओ ख्ववईओ सुमंगल-सुणंदाओ देवीओ तुं विवाहिउँ अरिहेसि / सामी वि ओहिणा पुबलक्खाणं तेसीई जाव निकाइयं भोगफलं नियकम्मं अम्हाणं भोत्तव्वं अस्थि त्ति जाणेइ, इमं कम्मं अवस्स भोत्तव्यं ति मत्थयं कंपमाणो सामी तया सायंतणे सरोयमिव हिट्ठमुहो चिट्ठइ / अह पुरंदरो पहुणो अभिप्पायं उवलखित्ता विवाहकम्मारंभाय सिग्घं आभियोगियदेवे सदावेइ / आभियोगियदेवकयमंडववण्णणं - ___ अह ते आभियोगियदेवा इंदस्स सासणाओ सुहम्मसहाए अणुयंपिव मंडवं रयति / तत्थ सुवण्ण-माणिक्क-रययथंभा मेरु-रोहण-वेयड्ढ-चूलिगा इव पयासेइरे / उज्जोयगरा सुवण्णकुंभा तत्थ चक्कवहिणो कागिणीरयणमंडलाई इव छज्जिरे, अण्णतेय-असहाओ सुवण्णवेइगाओ आइच्चपयासं पराभवंतीओ विरायंति, अब्भतरे पविसंता मणिसिलाभित्तीसं पडिबिंबिया के के परिवारत्तणं न जंति ? / रयणथंभावत्थियाओ सालभंजियाओ संगीयकरणपरिसंतनत्तगीओ इव भासेइरे, सबदिसासुं कप्परुक्खपल्लवेहिं कयतोरणाई कामदेवेण सज्जिपाइं धणुहाई इव सोहंते, फलिहमयदुवारसाहासु नीलमणितोरणाई सरयमेहपंतिमझ 44. 1 अज्ञात्वा /
SR No.004443
Book TitleSiri Usahanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykastursuri, Chandrodayvijay Gani
PublisherNemi Vigyan Kastursuri Gyanmandir
Publication Year1968
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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