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________________ सिरिउसहनाहस्स देहसोहालक्खणाई। चित्ताणुरंजणाय उसहसामी कीलेइ / धुलीधसरसव्वंगो धग्घरमालं धरंतो कीलंती पहू अभंतरठियमयावत्थाकलहो इव विराएइ। सामी जं किंचि लीलाए हत्थेण गिण्हेइ तं उद्दालेउं महड्ढिओ वि देवो न खमो / जो पहुणो बलं परिक्खिउं अंगुलिं पि गिण्हेइ, सो 'सासपवणेणावि रेणुव्व दूरओ गच्छेइ / केई सुरकुमारा विचित्तगेंदुगेहि भूमीए लोट्टमाणा गेंदुया इव पहुं रमाविति, केइ रायसुगा होऊण जीव जीवत्ति नंद नंदत्ति वारंवारं वयंति / केइ सुरा मोरा भविऊणं केकासद कुणंता सामिस्स पुरओ नच्चिरे, केइ हंसरुवधरा गंधारसदं रवंता पासम्मि चरंति, केवि कोचरूवधरा मज्झिमारावं कुणंता पुरओ रसंति, धरियकोइलरूवा केवि सुरा पहुमणविणोदाय सामिसंनिहिम्मि पंचमसरं गायंति, केवि सुरा पहुवाहणेण अप्पाणं पवित्तिउं इच्छंता तुरंगा हविऊण हेसारवेण धेवयझुणि कुणंति / केवि कलहरूवधरा निसायसरं रसंता अहोमुहा होऊण करेण पहुस्स चरणे फरिसंति / के वि वसहरूवधरा 'रिसभसरछज्जिरा सिंगेहिं तडीओ तालिंतो सामिणो नयणविणोयं पकुव्वं ति, के वि अंजणायलसंनिहा महिसीहोऊण मिहो जुज्झमाणा भत्तुस्स जुद्धकीलं दंसेइरे / के वि पहुणो विणोयर्ट मल्लरूवधारिणो सुरा मुहं मुहं भुए अप्फालिंता मल्लजुद्धभूमीसुं परुप्परं बोल्लाविंति, एवं देवकुमारेहिं विविहविणोयपयारेहिं सययं उवासिज्जमाणो ताहिं च धाइरूवधराहिं देवंगणाहिं लालिज्जमाणो विहू कमेण वुडिंढ पावेइ / अंगुट्टामयपाणावत्थाए परओ वयंमि संठिआ अवरे अरिहंता गिहवासे सिद्ध अण्णं भुजेइरे, भय नाभिनंदणो उ देवाणी-उत्तरकुरुखेत्तफलाई मुंजेइ, खीरसमुद्दजलं च पिवेइ, एवं पहू बालत्तणं उलंधिऊण विभत्तावयवं बीयं जोव्वणवयं पावेइ / जिणज्जोव्वणकाले देहसोहा देहलक्खणाई च जोव्वणवयंमि पत्ते पहुणो पाया मउआ रत्ता कमलोयरसरिसा कंपसेयरहिया उण्हा समतला य संजाया / सामिस्स लच्छीलीलागेहाणं पायाणं तलम्मि संखकुंभचिण्हाई तह पण्हीए सत्थिओ विरायति / सामिस्स अंगुट्ठो मंसलो वटुलो तुंगो भुजंगमफणुवमो वच्छो इव सिरिवच्छलंछिओ, पहुणो निन्याय-निकंप-सिणिद्धदीवसिहोवमाओ निरंतराओ उज्जूओ अंगूलीओ पायपउमाणं दलाई इव सोहेइरे / जगगुरुणो पायंगुलितलेसुं गंदावत्ता सोहंति, जाण पडिबिंबाई पुढवीए धम्मपइट्ठाणहेउत्तणं पावंति / अंगुलीणं पव्वेसुं जवा जगप्पहुणो जगलच्छीविवाहाय "उत्ता इव 1 श्वासपवनेनापि / 2 ऋषभस्वरबन्धुराः / 3 वत्सः / 4 उप्ताः /
SR No.004443
Book TitleSiri Usahanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykastursuri, Chandrodayvijay Gani
PublisherNemi Vigyan Kastursuri Gyanmandir
Publication Year1968
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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