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________________ 210 बृहत्कल्पचूर्णिः // [ पीठिका 91 90 113 118 787 790 199 145 560 उवसामग सासाणं उवसामगसेढिगयस्स उवहयमइविण्णाणे उवहीलोभ भया वा उव्वरए कोणे वा उस्सग्गाई वितहं उस्सण्णं सव्वसुयं उस्सण्णेणं असण्णी उंडिय भूमी पेढिय 147 570 563 573 624 271 54 160 621 73 .269 332 330 S 30 उसरदेसं दड्डे० ऊससियं णीससियं 632 274 709 162 73 177 700 198 526 749 192 . 629 272 706 60 73 697 197 523 746 192 51 55 134 189 एए उ अघिप्पंते एक्वेक्वं तं चउहा एक्कक्कं सत्त दिणे एक्केक्कमक्खरस्स उ एक्केको जियदेसो एक्कक्को पुण उवचय० एक्केणं एक्कदलं एक्को य जहण्णेणं एगंतरमायंबिल एग वा अत्थपदं एगत्थे उवलद्धे एगदुतीचउपंचग एगपदे दुतिगादी एगम्मि अणेगेसु व एगयरणिग्गओ वा एगविहारी अ अजाय० एगागित्तमणट्ठा एगेण विसति बीएण एतद्दोसविमुक्वं एते पदे ण रक्खति एमेव अजीवस्स वि '54 17 450 . 118 445 199 198 611 156 176 608 694 699 177 696 346 133 512 567 155 344 509 564 155 146.
SR No.004440
Book TitleBruhatkalp Sutram Pithika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheelchandrasuri, Rupendrakumar Pagariya
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2008
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bruhatkalpa
File Size20 MB
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