________________ 27 भाष्यगाथा-७७४-७८३] "आवास" गाधा / कंठा / इदाणिं अकडसामायारी दुविधा सामायारी, उवसंपद मंडली' बोधव्वा / अणालोइयम्मि गुरुगा, मंडलिमेरं अतो वोच्छं // 780 // सुत्तम्मि होइ भयणा, पमाणतो यावि होइ भयणा उ। अत्थम्मि उ जावइया, सुणेति थेवेसु अण्णे वि // 781 // "दुविधा सामायारी०" गाधाद्वयम् / अकडसामायारी दुविधा / उवसंपदसामायारीए उवसंपण्णं जो अणालोइयगुणदोसं. परि जति तस्स 4 / 'सुत्तम्मि होइ भयणा / सुत्त पोरिसीए णिसज्जा कज्जेज्ज वा ण वा / कधं ? जति तरुणो णीरोगो आयरिओ अप्पणो य से पडिभाति तो अप्पणिज्जयाए रयहरणणिसेज्जाए उवेट्ठओ सुत्तं 'वाएतु / अहवा कारवेति, थेरो वा, रोगी वा जस्स तस्स साधुस्स कप्पे, पमाणतो यावि त्ति, एगम्मि वा दोसु वा, जत्तिएहिं वा कप्पेहिं २उवे?ओ सुहं वायणं देति, तत्तिएहिं कप्पेहि णिसेज्जा कीरति, एस भयणा। अत्थमंडलीए पुण जावतिया सुणेति तेहिं सव्वेहिं एकेक्को कप्पो दातव्वो / अध थोवा चेव सुणेति तो अण्णे वि कप्पे देंति असुणेतगा, जत्तिएहि णिसज्जा भवति / मज्जण णिसिज्ज अक्खा, किइकम्मुस्सग्ग वंदणग जेटे। परियाग जाइ सुअ सुणण समत्ते भासई जो उ॥७८२॥ "मज्जण" गाधा / “मज्जणं"ति मंडलीभूमी ण पमज्जंति 0 / णिसेज्जातो दो ण करेंति ह / अखे ण पमज्जति ह / कितिकम्मं न करेंति गुरुणो / 0 / सम्मं पट्ठवणकाउसग्गं न करेंति / 0 / खेलमत्तयं ण ढोएंति / 0 / वंदणग जेटे त्ति / णंदीए कड्डियाए जेट्ठस्स पणामं ण करेंति / / आह-किं जो परियायेण जेट्ठो सो जेट्ठो, अध जो जातीए, अध बहुसुयत्तणेणं, अध जस्स बहुगीओ परिवाडीओ गताओ? / आयरिओ भणति-एतेसिं एगो वि ण भवति / जो समत्ते३ वक्खाणे उट्ठिताणं अणुभासति सो जेट्ठो / अवितधकरणे सुद्धो, वितह करेंतस्स मासियं लहुगं / अक्ख णिसज्जा लहुगा, सेसेसु वि मासियं लहुगं // 783 // "अवितध०" गाधा / एतेहिं सव्वेहिं पमज्जणादीहिं पदेहिं अवितधं करेंतो सुद्धो। वितहं करेंतस्स त्ति, कंठं / 'अकडसामायारित्ति गतं / इदाणि 'तरुणधम्मे 'त्ति दारं / / 1. वायतु पू० 2 / 2. उवट्ठिओ पा० / 3. त्ते प्रपाठके उ० पू० 2 /