________________ 196 बृहत्कल्पचूर्णिः // [पीठिका भवति ? / उच्यते णिस्साणपदं पीहइ, अणिस्साणविहारयं ण रोएइ। तं जाण मंदधम्मं, इहलोगगवेसगं समणं // 774 // "णिस्साण०" गाधा / सो सुहसीलो एरिसो मंदधम्मो भवति / 'दुब्बलचरित्तेत्ति गतं / इदाणि 'आयरियपारिभासित्ति दारं / डहरो अकुलीणो त्ति य, दुम्मेहो दमग मंदबुद्धि त्ति / अवि अप्पलाभलद्धी, सीसो परिभवइ आयरियं // 775 // "डहरो" गाधा / अपि शब्दात् कदाचित् स आचार्यः डहरो वा सिया, अकुलीणो वा, दुम्मेधो वा, दमगो वा, मंदबुद्धी वा, अप्पलद्धी वा, अलद्धी वा / ताधे सो सीसो एतेहिं कारणेहिं परिभवति तं आयरियं, ण बहुमाणीकरेति / 'सीसो 'त्ति / अस्य व्याख्या सो वि य सीसो दुविहो, पव्वावियगो अ सिक्खओ चेव / सो सिक्खओ अतिविहो, सुत्ते अत्थे तदुभए य // 776 // "सो वि य०" गाधा / कंठा / आयरियपारिभासि त्ति दारं गतं / इदाणि 'वामावट्टे'त्ति दारं / एहि भणिओ उ वच्चइ, वच्चसु भणिओ दुतं समल्लियइ / जं जह भण्णति तं तह, अकरेंतो वामवट्टो उ // 777 // "एहि भणिओ०" गाधा / कंठा / पिसुणे य त्ति दारं- . पीतीसुण्णण पिसुणो, गुरुगाइ चउण्ह जाव लहुओ उ / अहव असंतासंते, लहुगा लहुगो गिही गुरुगा // 778 // "पीतीसुण्णण०" गाधा / प्रीति शून्यां करोतीति पिशुनः / आयरियस्स जति करेति तो ह्वा / वसभस्स ह्व। भिक्खुस्स / / खुड्डगस्स 0 / अथवा अन्यो विकल्पः / संजतस्स असंतेणं पीति सुन्नीकरेति 4 / संतेण 0 / गिहत्थस्स असंतेण 4 / संतेण 0 / एतं जो करेति तस्स पच्छित्तं / एरिसस्स जो सुत्तत्थे देइ तस्स उवरिं पच्छित्तं भण्णिहिति / 'पिसुणे 'त्ति गतं / इदाणि आदिमदिट्ठभावे त्ति दारं आवासगमाईया, सूयगडा जाव आइमा भावा / ते उण दिट्ठा जेणं, अदिट्ठभावो हवइ एसो // 779 // 1. आदी आदिट्ठ० पू० 2 /