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________________ भाष्यगाथा-७०३-७०९] 179 अबहुस्सुतो अगीतत्थो जति दिण्णं गणं धरेइ 4 / अबहुस्सुतो गीतत्थो धरेइ 4 / बहुस्सुओऽगीतत्थो धरेइ 4 / बहुस्सुओ गीतत्थो धरेइ एत्थ सुद्धो। चरिमे भंगे अणुण्णाओ त्ति / जो बहुस्सुतस्स गीतत्थस्स देति, एतं अणुण्णातं / जो य एतेण दिण्णं बहुस्सुतो गीतत्थो धरेति, एस वि अणुण्णातो। आह, जं एतं देंतय-धरैताणं तिसु भंगेसु चउगुरुगं पच्छित्तं भणितं एत्तिएण गतं? उच्यते-ण वि 'तद्देवसितं' (गा० 706) पच्छद्धं / अस्स विभासा सत्तरत्तं तवो होति, तओ छेओ पहावई। छेएणऽच्छिण्णपरियाए, तओ मूलं तओ दुगं // 708 // "सत्तरत्तं तवो होति" / अस्यापि व्याख्या एक्ककं सत्त दिणे, दाऊण अइच्छियम्मि उ तवम्मि / पंचाइ होइ छेदो, केसिंचि जहा कडो तत्तो // 709 // "एक्केकं सत्त दिणे" पुव्वद्धं / सत्त दिवसे' चउगुरुगं 2 पच्छित्तं भवति / ताधे जति एत्तिए अपुणक्कारेण ठिता तो एत्तियं चेव पच्छित्तं / अध ण ठायंति तो अण्णे सत्तदिवसे दिणे दिणे छल्लहुगं दिज्जति / जति द्विता सुंदरं, अह ण उवसमंति तो अण्णे सत्तदिवसे दिवसेरे छगुरुगं 2 दिज्जति / जति उवरता, ठितं पच्छित्तं ति / अह ण उवरमंति ताधे छेदो पधावति / सो पुण च्छेदो केई भणंति-पंचरातिदियातो आढवेति / अण्णे भणंति-जतो तवो कडो त्ति आरद्धो, तओ छेओ वि आढवेति चउगुरुगादित्यर्थः / जधा छेदस्स पंचराइंदिया आढवणाए चउगुरुगा आढवणाए एते दो आदेसा दिट्ठा तधा लहु गुरुए वि दो आदेसा / केइ भणंतिलहुएहितो पंचराइंदिएहितो आढवेति / केई भणंति-गुरुएहितो पंचरातिदिएहितो आढवेति / तत्थ लहुआढवणा सत्तदिवसाणि, पणगलहुओ 2 छेओ / तओ अन्नाणि ३सत्त पणगगुरुओ छेओ, तओ अण्णाणि सत्त दसलहुओ छेदो, ततो अण्णाणि सत्त दिणाणि दसगुरुगो छेदो, "ततो अण्णाणि सत्त पण्णरसलहुगो छेदो, ततो अण्णाणि सत्त पण्णरसगुरुगो छेदो, तओ अण्णाणि सत्तवीसलहुओ छेओ, तओ अण्णाणि सत्तवीसगुरुगो छेओ, ततो अण्णाणि सत्त पंचवीसलहुओ छेदो / ततो अण्णाणि सत्त पंचवीसगुरुगो छेदो। ततो मासा Iol, ततो मासा |10|, ततो ह्व। तओ अण्णाणि सत्त 4ii छेदो, ततो अण्णाणि सत्त 6 छेदो। ततो अण्णाणि सत्त 6. छेदो। गुरुआढवणा इमा। छग्गुरुगातो तवातो उवरि अण्णाणि सत्तदिवसाणि ५पणगगुरुओ छेदो / ततो अण्णाणि सत्त दसलहुतो छेदो / ततो अण्णाणि सत्त दसगुरुओ छेदो। एवं जाव ततो अण्णाणि सत्त पंचवीसलहुओ छेदो, ततो अण्णाणि सत्त पणुवीसगुरुओ छेदो / तओ 1. सत्तदिवसे 2 चउगुरुगं प० पू० 2 / 2. दिवसे 2 छगुरुगं दि० पू० 2 / 3. सत्तदिणे गु० पू० 4. अबहुस्सुए ततो पू० 2 / 5. पंच पा० / 6. एवं जाव ततो अनाणि सत्त छलहु छेदो, ततो अन्नाणि सत्त छगुरुओ छेदो / जति एत्तिएणं० पा० / /
SR No.004440
Book TitleBruhatkalp Sutram Pithika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheelchandrasuri, Rupendrakumar Pagariya
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2008
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bruhatkalpa
File Size20 MB
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