________________ 178 बृहत्कल्पचूर्णिः // [पीठिका "अप्पुव्वस्स०" गाधा / कंठा / दसणे चरणे य / चरगाई वुग्गाहण, ण य वच्छल्लाइ दंसणे संका। थी सोहि अणुज्जमया, णिप्पग्गहया य चरणम्मि // 703 // "चरगाई०" गाहा / कंठा / स्त्रीप्रसंग: स्यात् / 'सोही'णाम पच्छित्तं / तं से खलियस्स को देउ ? अणुज्जमंतस्स सारणं को करेउ ? "णिप्पग्गहता य" त्ति, ण कस्स वि संकितव्वं, ताधे जं से रुच्चति तं करेइ / किञ्च सामण्णाजोगाणं, बज्झो गिहिसण्णसंथुओ होइ। दंसण-णाण-चरित्ताण मइलणं पावई एक्को // 704 // "सामण्ण" गाधा / श्रमणभावे ये योगा वैयावृत्त्यादयः, तेषां बाह्यः-अनाभागी भवतीत्यर्थः / गिहिसण्णसंथुतो कधं होति ? उच्यते कतमकते गिहिकज्जे, संतप्पइ पुच्छई तहिं वसइ। . संथव-सिणेहदोसा, भासा हिय णट्ट सोगो अ॥७०५॥ "कतमकते०" गाधा / कंठा / 'भास'त्ति सावज्जा / दंसणमइलणा चरगादीहिं / णाणमइलणा पावसुताणुरागतो उम्मग्गपण्णवणाए वा / चरणं एगणितस्स विद्दाति चेव / विहार इति वर्तते / गच्छो त णियमा विहरति, तस्स य आतरियो अधिपती / तो इच्छामो णाउं केरिसस्स गच्छो दिज्जति ? / अणरिहस्स य देतो, अणरिहो त धरेमाणो, एते किं पच्छित्तं पावंति ? एतेण अभिसम्बन्धेण इमा गाधा अबहुस्सुए अगीयत्थे णिसिरए वा वि धारए व गणं / तद्देवसियं तस्सा, मासा चत्तारि भारिया // 706 // "अबहुस्सुते'" बहुस्सुत-अबहुस्सुत गीत-मगीता पुव्वं भणिता / अबहुस्सुते अगीतत्थे निसिरए वा वि / अस्स विभासा अबहुस्सुअस्स देइ व, जो वा अबहुस्सुओ गणं धरए / भंगतिगम्मि वि गुरुगा, चरिमे भंगे अणुण्णाओ // 707 // अबहुस्सुतस्स देति / अबहुस्सुतस्स अगीतत्थस्स जो देति 4] / अबहुस्सुतस्स गीतत्थस्स देति जो तस्स वि 4 / एतस्स आचारपगप्पो सुत्तओ नट्ठो, अत्थं संभरति / अधवा आणाधारणाहिं गीतत्थो, बहुस्सुतस्स अगीतत्थस्स देति 4 / बहुस्सुतस्स गीतत्थस्स देति एत्थ सुद्धो / अबहुस्सुते अगीतत्थे धारए व गणं / अस्स विभासा / जो वा अबहुस्सुतो तु गणं धरए / 1. श्रामणभवा पू० 2 / 2. णटुं पू० 2 /