________________ 152 बृहत्कल्पचूर्णिः // [पीठिका "काएसु तु संसत्ते, सचित्त-मीसेसु होति सट्ठाणं" / काएसु पुढविमादीहिं संसत्ताए ठाति ह्र / हरितेहिं अणंतेहिं ह्वा / बीएहिं परित्तेहिं तृ / अणंतेहिं ना / मीसेसु पुढवीमादीसुं // 0 // , अणंतहरितेहिं / / तसेसु ह्व / एवं ठायंतस्स पच्छित्तं, ठितो संघट्टणादि जति करेति तो 'लहुगुरुलहुगा चरिम जाव'त्ति / अस्स विभासा "छक्काय चउसु लहुगा" गाधा अणुसज्झियव्वा / 'सागारिय' पच्छद्धं / निग्गंथाणं पुरिससंसत्ते 4 / इत्थिसंसत्ते 4 // निग्गंथीणं थीसंसत्ते 4 / पुरिससंसत्ते 4 / आणादिणो दोसा / इदाणि 'पच्चवात'त्ति दारं / 'बंभव्वय' (गा० 591) पच्छद्धं / एतेसिं जा विराधणा भवति सा सपच्चवाता सेज्जा / तत्थ पच्छित्तं भण्णतिरे / गुरुगा बंभावाए, आयाए चेव दंसणे लहुगा। आणादिणो विराहण, भवंति एक्कक्कगपदातो // 593 // "गुरुगा०" गाधा / बंभावायं गेण्हमाणस्स 4, ३आयाए चेव 4 / 'एक्केक्कगपदातो 'त्ति / दुविधकरणोवघातादिसु सव्वपएसु / सेसं कंठं / इयाणि न ज्ञायते केरिसता बंभवतपच्चवाता, आयपच्चवाता, दंसणपच्चवाता वा? / अत उच्यते तिरिय-मणुइत्थियातो, बंभावातो उतिविह पडिमातो। अहिबिल-चलंतकुड्डादि एवमादी उ आयाए // 594 // आगाढमिच्छदिट्ठी, सव्वातिहि मरुग बहुजणट्ठाणा। पासंडा य बहुविहा, एसा खलु दंसणावाया // 595 // "तिरिय०" गाधाद्वयम् / कंठं / तिविधपडिमाओ य / जत्थ त्ति वाक्यशेषः / 'सव्वातिधित्ति सत्रम् / 'मरुग'त्ति चट्टसाला / बहुजणट्ठाणं आगंतुकाणं / इदाणि सेज्जाविधि त्ति दारं / विधिविधानं भेदः प्रकार:-इत्यनर्थान्तरम् / सा सेज्जा णवविधा / कालातिकंतोवट्ठाण अभिकंत अणभिकंता य। वज्जा य महावज्जा, सावज्ज महऽप्पकिरिया य // 596 // "कालातिकंत०" गाधा / एतासिं पच्छित्तं भण्णति 1. छक्काय चउसु लहुगा, परित्त लहुगा य गुरुग साधरणे / संघट्टण परितावण, लहु-गुरु अतिवायणे मूलं // [निशी० 117] 2. भवति पू० 2 / 3. आए पू० 2 /