________________ 151 भाष्यगाथा-५८३-५९२] विसोधिकोडी / अप्फासुएण देसे, सव्वे वा दूमियादि चउलहुगा / अप्फासु धूमजोती, देसम्मि वि चउलहू होंति // 588 // "अप्फासुएण०" गाधा / जत्थ अप्फासुएणं दूमिज्जइ / आदिग्गहणेणं सव्वे पता गहिता / तेसु देसे वा सव्वे वा चउलहुगा / जत्थ धूमिज्जति उज्जोविज्जति वा तत्थ णियमा अगणी सचित्तो अप्फासुतो त्ति काउं देसे वि चउलहुगा / किमुत सव्वे ? / सेसेसु फासुएणं, देसे लहु सव्वहिं भवे लहुगा / सम्मज्जण साह-कुसादि छिण्णमेत्तं तु सच्चित्तं // 589 // "सेसेसु०" गाधा / 'सेसेसु'त्ति धूवितं उज्जोवितं च मोत्तुं दूमित-वासित-बलिकडअवत्त-सित्त-सम्मट्ठ एतेसु फासुएणं देसे मासलहुं / सव्वे चउलहुं / जं सम्मज्जिज्जति तत्थ अफासुगं, साहा दब्भा वा छिण्णमेत्तया / एतेसु वि देसे सव्वे वा चउलहुँ। मूलुत्तरचउभंगो, पढमे बीए य गुरुग सविसेसा / तइयम्मि होइ भयणा, अत्तट्ठकडो चरम सुद्धो // 590 // "मूलुत्तर०" माधा / मूलगुणा जे पट्टीवंसादिणो ते संजतट्ठाए, उत्तरगुणा जे वंसादिणो अविसोधिकोडीए ते वि संजतट्ठाए, एत्थ चउगुरुगा, दोहिं वि गुरुगा / मूलगुणा संजतट्ठाए उत्तरंगुणा स-अट्ठाए / एत्थ वि चउगुरुगा / तवगुरुगा काललहू / 2 'तइयम्मि होति भयण'त्ति / मूलगुणा स-अट्ठाए, उत्तरगुणा संजतट्ठाए / एस ततिओ / एत्थ जे उत्तरगुणा ते जति अविसोहिकोडीए तो चउगुरुगा / तव-कालगुरू / अह विसोहीकोडीए ते उत्तरगुणा तो अफासुएणं देसे सव्वे वा चउलहुगा / फासुएणं देसे मासलहुं / सव्वे चउलहुं / चरिमो सुद्धो त्ति, आतट्ठाए मूलगुणा, आतढाए उत्तरगुणा / एत्थ ठायंतो सुद्धो / इदाणि संसत्तं ति द्वारं / “संसत्तम्मि य छक्कं / रेलहु-गुरु लहुगा चरिम जाव" (गा० 584) / सा पुण केण संसत्ता होज्जा ? उच्यते-'छक्केणं'ति छहिं काएहिं / तं जधा पुढवि दग अगणि हरियग, तसपाण सागारियादि संसत्ता। बंभवय आदि-दसणविराहिगा पच्चवाया उ॥५९१॥ "पुढवि-दग०" पुव्वद्धं / अस्स विभासाकाएसु उ संसत्ते, सचित्त-मीसेसु होइ सट्ठाणं / सागारियसंसत्ते, लहुगा गुरुगा य जे जत्थ // 592 // 1. एस वसही वि० पू० 2 विना / 2. वि देसे वि चउ० पू० 2 / 3. चउगुरु-लहुगा० पू० 2 /