________________ भाष्यगाथा-४९९-५०५] 131 "हरिते." दारगाधा / 'हरिए बीए' त्ति / अनयोर्व्याख्या'हरिते बीएसु तहा, अणंतरे परंपरे य बिचउक्के / आता दुपदं च पयट्टितं तु एत्थं तु चउभंगो // 504 // "हरिते०" गाधा / हरितेसु साधू अणंतरपतिट्ठितो णो परंपरपतिट्ठितो वा चउभंगो। एवं बीएसु वि चउभंगो / हरितेसु भंडी अणंतरपतिट्ठिता णो परंपरपतिट्ठिता चउभंगो / एवं बीएसु वि चउभंगो / बि चउक्क त्ति साधुम्मि हरितेसु एगो चउभंगो, बितिओ बीएसु। एवं भंडीए वि दो चउभंगा भणिता / "आता दुपतं च पतिद्रुितं ति एत्थं पि चउभंगा" / दो इति वाक्यशेषः। 'आय'त्ति साधू / हरितेसु साधू भंडी त अणंतरपतिट्ठिताणि णो परंपरपतिट्ठिताणि चउभंगो / एवं बीएसु वि चउभंगो // इदाणि एतेसिं चेव पच्छित्तं भण्णति चउरो लहुगा गुरुगा, मासो लहु गुरु य पणग लहु गुरुयं / छसु परितऽणंत मीसे, बीजे य अणंतर परे य // 505 // "चउरो०" गाधा / जत्थ परित्तेसु हरितेसु साधू अणंतरपतिट्ठितो णो परंपरपतिट्ठिओ, तत्थ ह / जत्थ वि परंपरपइटिओ णो अणंतरपतिट्टिओ तस्स वि ह / ततियभंगे अणंतरपरंपरपतिट्ठितो दो चउलहूणि, चरिमो सुद्धो / एवं भंडीए वि / परित्त-हरितेसु अणंतरपइट्ठिताए परंपरपतिट्ठियाए य, आदिमभंगेसु दोसु दो३ चउलहू / ततियभंगे दो चउ लहूणि, चरिमे सुद्धो / जत्थ परित्त-हरिएसु साधू भंडी य अणंतरपतिट्ठियाणि णो परंपरपतिट्ठिताणि, एत्थ आदिमभंगेसु दोसु दो दो चउलहूणि / तइयभंगे चत्तारि चउलहूणि / . चरिमे सुद्धो। जत्थ अणंताणि हरिताणि तत्थ तिसु वि चउभंगेसु एते चेव चउगुरुगा / चरिमेसु तिण्ह वि सुद्धो / जत्थ मीसयाणि हरिताणि तत्थ एतेसु चेव ठाणेसु परित्तेसु मासलहू, अणंतेसु मासगुरू। चरिमेसु तिण्ह वि सुद्धो / बितिएसु परित्तेसु सचित्तेसु मीसेसु वा तेसु चेव भंगेसु पंचरातिदिया लहुगा / चरिमेसु तिण्ह वि सुद्धो / अणंतेसु पंचरातिदिया गुरुगा। चरिमेसु 3 सुद्धो / छसु त्ति छसु चउभंगेसु / अधवा छसु त्ति परित्त-हरिएसु सचित्तेसु 1 अणंतहरिएसु सचित्तेसु 2 परित्तहरिएसु मीसेसु 3 अणंतहरिएसु मीसेसु 4 परित्तबीएसु 5 अणंतबीएसु 6 / इमं सेसदारपच्छित्तं / 1. हरिते बीएँ पतिट्ठिय, अणंतर परंपरे य बोधव्वे / परिताणते य तहा, चउभंगो होति नायव्वो // 501 // [वृत्तौ स्वीकृतः पाठः // ] 2. पा० प्रतौ न / 3. पू० 2 नास्ति /