________________ भाष्यगाथा-३४७-३५४] 97 गच्छति, अमुओ एरिसो तारिसो त्ति विकहाहिं य अथक्कपुच्छाहि य आयरियं तधा तधा परिस्समेति, जधा ण वि तस्स कहिज्जति ण वि अण्णस्स गणस्स / एरिसे ते च्चेव दोसा। "मेसे"-त्ति, महिसपडिपक्खो मेसो-एलओ / सो अवि गोपयम्मि वि पिबे, सुढितो तणुयत्तणेण तुंडस्स। ण करेति कलुस तोयं, मेसो एवं सुसीसो वि // 351 // - "अवि गोपयं०" गाधा / गोप्पए वि जं जण्णुएहिं णिसुढित्ता तणुयत्तणेणं तुंडस्स अलोलितं चैव पाणियं पीउं गच्छति / एरिसो जो सीसो आयरियं अणुद्धरूसेतो गेण्हति तारिसे दातव्वं / इयाणि 'मसए' त्ति दारंमसगो व्व तुदं जच्चाइएहिं णिच्छुब्भती कुसीसो वि / जलुगा व अमितो पियति सुसीसो वि सुयणाणं // 352 // "मसगो व्व०" गाधा / जधा मसओ रेलग्गंतओ चेव दुक्खावेति, पच्छा उड्डाविज्जति मारिज्जति वा / एवं जो सिस्सो जातिकुलादीहिं तर्जेतिरे सो णिच्छुब्भति / तारिसस्स देंते असंखडादतो दोसा / 'जलोग' त्ति / मसगपडिपक्खो जलूगा / जधा-सा अदूमेंती अदुक्खावेंति त्ति भणियं होति, लग्गित्ता रुधिरं पिबति / उक्तञ्च दंसो तिक्खणिवातेणं, अप्पणो वधमिच्छति / ____जलूगा वि तदेवत्थं, मद्दवेणोपसप्पति // एवं जो सीसो आयरियं अदुहावेतो गेण्हइ तस्स दायव्वं / 'विरालि'त्ति / सा छड्डेडं भूमीए, खीरं जह पियति मुद्ध मज्जारी / परिसुट्ठियाण पासे, सिक्खति एवं विणयभंसी // 353 // "छड्डेउं०" गाधा कंठा / 'मुद्ध'त्ति अपंडिया / एवं जो गारवेणं ण सुणेति मंडलीए, जाधे उद्वित्ता सोतारा भवंति, ताधे अणुभासंताणं पासे उवेसित्ता सुणेति, तस्स न दायव्वं / 'जाहए' त्ति विरालीए पडिवक्खो / सो पाउं थोवं थोवं, खीरं पासाणि जाहगो लिहति / एमेव जियं काउं, पुच्छति मइमं ण खेएइ // 354 // "पाउं" गाधा कंठा / 'गो'त्ति 1. अणुगुरुसेतो, पू० 2, पा० / 2. लब्भंतओ पू० 2 / 3. हीलेति पा०, पू० 1-2 /