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________________ [123 संवेगः] | नाम व्याख्या गाथा 17, स्वाध्याय 18, वाचना 19, परिप्रच्छन्ना 20, परावर्नना 21, ऽनुप्रेक्षा 22, धर्मकथा 23, श्रुताराधना 24, एकाग्रमन:संनिवेशना 25, संयम 26, तपः 27, व्यवदानं 28, सुखाशय 29, अप्रतिबन्धता 30, विविक्तशयनासनसेवना 31, विनिवर्त्तना 32, सम्भोगप्रत्याख्यान 33, उपधिप्रत्याख्यान 39, भक्तप्रत्याख्यान 40, सद्भावप्रत्याख्यान 41, प्रतिरूपता 42, वैयावृत्त्य 43, सर्वगुणसम्पूर्णता 44, वीतरागता 45, क्षान्ति 46, मुक्ति 47, मार्दव 48, आर्जव 49, भावसत्य 50, करणसत्य 51, योगसत्य 52, मनोगुप्तता 53, वाग्गुप्तता 54, कायगुप्तता 55, मन:समाधारणा 56, वाक्समाधारणा 57, कायसमाधारणा 58, ज्ञानसम्पन्नता 59, दर्शनसम्पन्नता 60, चारित्रसम्पन्नता 61, क्षोत्रनिग्रह 62, चक्षुर्निग्रह 63, घ्राणनिग्रह 64, जिह्वानिग्रह 65, स्पर्शननिग्रह 66, क्रोधविजय 67, मानविजय 68, मायाविजय 69, लोभविजय 70, प्रेमद्वेषमिथ्यादर्शनविजय 71, शैलेश्यकर्मता 72, इति द्वासप्ततिस्थानसेवकः साधुलोकः / स.स. = संवेगवन्तः / द्वा. = नरविबुहेसरसुक्खं दुक्खं चिय भावओ उ मन्नतो / संवेगओ न मुक्खं मुत्तूणं किंपि पत्थेइ // 11 // वि. = भवभयम्, * मोक्षाभिलाषः / षो. = भवभीरुतापरिणामः / सा. = मोक्षाभिलाषः / यो.वि. = मोक्षाभिलाषः / सम्यग्दृष्टिर्हि नरेन्द्रसुरेन्द्राणां विषयसुखानि दुःखानुषङ्गाद् दुःखतया मन्यमानो मोक्षसुखमेव सुखत्वेन मन्यते अभिलषते च, 41 3/9 संवेगः Wmm
SR No.004439
Book TitleYog Granth Vyakhya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSuri Ramchandra Shatabdi Samiti
Publication Year2012
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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