________________ [योगग्रन्थव्याख्यासंग्रहः 120] / नाम व्याख्या गाथा श्रावक: श्रावकदिनकर्तव्यः * विहितानुष्ठानरुचिः / पं. = धम्मोवग्गहदाणाइसंगओ सावगो परो होइ / ... भावेण सुद्धचित्तो निच्चं जिणवयणसवणरई // 1 // विं. मग्गणुसारी सड्ढो पन्नवणिज्जो कियापरो चेव / गुणरागी सक्कारंभसंगओ देसचारित्ती // 2 // विं. = परलोयहियं सम्मं जो जिणवयणं सुणेइ उवउत्तो / ___अइतिव्वकम्मविगमा सुक्कोसो सावगो एत्थ // 2 // पं. = प्रतिदिवसं यतिभ्यः सकाशात् साधूनामगारिणां च सामाचारी श्रणोतीति / श्रा. 2 = संपत्तदंसणाई पइदियहं जइजणा सुणेई य / सामायारिं परमं जो खलु तं सावयं बिति // पं. 1/2 = नवकारेण विबोहो अणुसरणं सावओ वयाइं मे।। जोगो चिइवंदणमो पच्चक्खाणं तु विहिपुव्वं // 12 // विं. 9/12 / * तह चेईहरगमणं सक्कारो वंदणं गुरूंसगासे / पच्चक्खाणं सवणं जइपुच्छा उचियकरणिज्जं // 13 // वि. 9/13 अविरुद्धो ववहारो काले विहिभोयणं च संवरणं / चेइहरागमसवणं सक्कारो वंदणाई य // 14 // वि. जइविस्सामणुमुचिओ जोगो नवकारचिंतणाईओ / गिहिगमणं विहिसुवणं सरणं गुरूदेवयाईणं // 15 // वि. पंच य अणुव्वयाइं गुणव्वयाइं च हुंति तिन्नेव / / सिक्खावयाई चउरो सावगधम्मो दुवालसहा // 3 // वि. = अणुव्रताद्युपासकप्रतिमागतक्रियासाध्यः साधुधर्माभिलाषातिशयरूप: आत्मपरिणामः / ल.वि. = आद्यं कोष्ठबीजाभं, वाक्यार्थविषयं मतम् // 65 // अ.उ. 1/65 = शब्दशक्तिजन्यं ज्ञानम् / त.उ. 1/9 = श्रुतेन निर्वृत्तम्, 10/12 * स्वच्छस्वादुपथ्यसलिलास्वादतुल्यम्, 10/13 * ऊहादिना रहितम्, 11/6 * वाक्यार्थमात्रविषयं कोष्ठकगतबीजसन्निभं ज्ञानम् / षो. . 11/7 9/14 श्रावकधर्मः 155 श्रुतज्ञानम्