________________ 54 2-1-1-3-6 (343) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन I सूत्र // 6 // // 343 || से भिक्खू गाहावइकु लं पविसिउकामे सव्वं भंडगमायाए गाहावइकु लं पिंडवायपडियाए पविसिज वा निक्खमिज्जा वा। से भिक्खू वा , बहिया वियारभूमिं वा विहारभूमि वा निक्खम्ममाणे वा पविसमाणे वा सव्वं भंडगमायाए बहिया विहारभूमिं वा वियारभूमिं वा निक्खमिज वा पविसिज्ज वा। से भिक्खू वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे सव्वं भंडगमायाए गामाणुगामं दूइजिज्जा || 353 // II संस्कृत-छाया : स: भिक्षुः गृहपतिकुलं प्रवेष्टुकाम: सर्वं भण्डकं आदाय गृहपतिकुलं पिण्डपात प्रतिज्ञया प्रविशेत् वा निष्क्रामेत् वा / सः भिक्षुः वा बहिः विहारभूमिं वा विचारभूमिं वा निष्क्रामन् वा प्रविशन् वा सर्वं भण्डकं आदाय बहिः विहारभूमि वा विचारभूमिं वा निष्क्रामेत् वा प्रविशेत् वा। सः भिक्षु वा, ग्रामानुग्रामं गच्छन् सर्वं भण्डकं आदाय ग्रामानुग्रामं गच्छेत् // 343 || III सूत्रार्थ : साधु और साध्वी जब गृहस्थ के घर में प्रवेश करने की इच्छा करे तो अपने समस्त धर्मोपकरणों को साथ में लेकर गृहस्थ के घर में आहार-पानी की अभिलाषा से प्रवेश करे और बाहर निकले। साधु या साध्वी जब बाहर स्वाध्याय भूमि या स्थंडिल भूमि में गमनागमन करे तो उस समय अपने धर्मोपकरणों को साथ में लेकर स्थंडिल भूमि में, स्वाध्याय भूमि से निष्क्रमण और प्रवेश करे। साधु अथवा साध्वी एक गांव से दूसरे गांव जाय तो अपने सभी धर्मोपकरणों को साथ में लेकर एक गांव से दूसरे गांव जावे ! || 353 / / IV टीका-अनुवाद : कल्प के नियमानुसार गच्छ से निकले हुए वे जिनकल्पिकादि साधु गृहस्थों के घर में प्रवेश करने की इच्छावाले हो तब सभी धर्मोपकरण लेकर के हि गृहस्थोंके घरों में आहारादि पिंड की प्रतिज्ञा = चाहना से प्रवेश करे और वहां से निकले... जिनकल्पिकों के धर्मोपकरण का विधान अनेक प्रकार से हैं... जैसे कि- कम से कम दो उपकरण, और अधिक के अधिक तीन, चार, पांच नव, दश, ग्यारह, बारह, इत्यादि... उन जिनकल्पिकों के दो विभाग हैं... 1. छिद्रपाणि 2. अच्छिद्रपाणि... उनमें अच्छिद्रपाणिवालों को शक्ति अनुसार अभियह विशेष से दो प्रकार के उपकरण होतें हैं... 1. रजोहरण 2. मुखवस्त्रिका... तथा किसी और को शरीर (त्वक्-चमडी) की रक्षा के लिये