________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 565 नि.३५० (अध्ययन-७ महापरिज्ञा) पाहण्णे महसद्दो परिमाणे चेव होइ नायव्वो। पाहण्णे परिमाणे य छव्विहो होइ निक्खेवो / नि.३५१ दव्वे खेत्ते काले भावंमि य होंति या पहाणा उ। तेसि महासद्दो खलु पाहण्णेणं तु निप्फन्नो // नि.३५२ . दव्वे खेत्ते काले भावंमि य जे भवे महंता उ। तेसु महासद्दो खलु पमाणओ होंति निप्फन्नो॥ नि.343 दव्वे खेत्ते काले भावपरिण्णा य होइ बोद्धव्वा / जाणाणओ पच्चक्खणओ य दुविहा पुणेक्केका // नि.३६४ .. भावपरिण्णा दुविहा मूलगुणे चेव उत्तरगुणे य। मूलगुणे पंचविहा दुविहा पुण उत्तरगुणेसु // नि.3५५ पाहण्णेण उ पगयं परिणाए य तह य दुविहाए। परिणाणेसु पहाणे महापरिणा तओ होड़ // नि.३५६ देवीणं मणुईणं तिरिक्खजोणीगयाण इत्थीणं / तिविहेण परिच्चाओ महापरिण्णाए निजुत्ती / / अविवृता नियुक्तिरेषा महापरिज्ञायाः, अविवृता इत्यत्रोपन्यस्ताः / // प्रथमं अङ्गसूत्रं आचाराङ्गं परिसमाप्तम् / / % %