________________ 564 श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन %3 नि.3४२ वेरग्गमप्पमाओ एगत्ता (ग्गे) भावणा य परिसंगं / इय चरणमणुगयाओ भणिया इत्तो तवो वुच्छं॥ नि.3४३ किह मे हविजऽवंझो दिवसो ? किं वा पहू तवं काउं। को इह दव्वे जोगो खित्ते काले समयभावे॥ नि.३४४ उच्छाहपालणाए इति तवे संजमे य संघयणे। वेरग्गेऽनिधाई होइ चरित्ते इहं पगयं / / नि.3४५ (चूलिका-४ विमुक्ति) अनिच्चे पव्वए रूप्पे भुयगस्स तहा महासमुद्दे य / एए खलु अहिगारा अज्झयणंमि विमुत्तीए / नि.३४६ जो चेव होड़ मुक्खो सा उ विमुत्ति पगयं तु भावेणं। देसविमुक्का साहू सव्वविमुक्का भवे सिद्धा॥ नि.३४७ आयारस्स भगवओ चउत्थचूलाइ एस निज्जुत्ती। पंचमचूलनिसीहं तस्स य उवरिं भणीहामि // नि.३४८ सत्तहिं छहिं चउचउहि य पंचहि अट्ठट्टचउहि नायव्वा। उद्देसएहिं पढमे सुयखंधे नव य अज्झयणा // नि.३४९ इक्कारस तिति दोदो दोदो उद्देसएहिं नायव्वा / सत्त य अट्ठ य नवमा इक्कसरा हुति अज्झयणा / / इतिश्रीआचारङ्गनियुक्तिः