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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी- टीका 553 उपसंहार आचारांगसूत्रके चार अनुयोग द्वारके अंतर्गत उपक्रम निक्षेप एवं अनुगम स्वरूप तीन द्वार पूर्ण हुआ... अब चौथे द्वार के प्रसंगमें नय का स्वरूप कहतें हैं... ' नयके मुख्य दो भेद है... 1. ज्ञान नय एवं 2. क्रियानय... यहां ज्ञाननय का स्वरूप इस प्रकार है... जैसे कि- ज्ञान हि इस जन्म एवं जन्मांतरमें प्राप्तव्य परमार्थको प्राप्त करने में समर्थ है... अन्यत्र भी कहा है कि- ग्रहण योग्य संवरका आदर करता है एवं त्याग योग्य आश्रवोंका त्याग करता है अतः ज्ञान हि प्रधान है... अतः ज्ञान के लिये हि उद्यम करना चाहिये. अब क्रियानय का स्वरूप कहतें हैं... क्रिया हि सफल है, अकेला ज्ञान पुरुषको फल नहि देता... जैसे कि- स्त्री एवं भक्ष्य आहारादिके भोग-फलको जाननेवाला पुरुष क्रियाके बिना मात्र ज्ञानसे सुख प्राप्त नहि करता... अन्यत्र भी कहा है कि- शास्त्रोंको पढनेके बाद भी मनुष्य यदि क्रियाका आदर नहि करता तब वह विद्वान नहि कहा जाता किंतु मूर्ख हि कहा गया है... जैसे कि- रोगवाला मनुष्य औषधके ज्ञान मात्रसे हि आरोग्य नहि करता किंतु औषधका सेवन करने पर हि आरोग्यको पाता है... इसीलिये कहा है कि- ग्राह्य एवं ग्राहकको जाननेके बाद क्रियाका भी अभ्यास करना चाहिये... इस प्रकार यह क्रियानय है... इस प्रकार ज्ञान एवं क्रियाका अभिसंधान याने समन्वय करके हि परमार्थ स्वरूप यह सुत्र कहा है कि"ज्ञानक्रियाभ्यां मोक्षः' अर्थात् ज्ञान एवं क्रियाके समन्वयसे हि जीव का मोक्ष होता है... आगम सूत्रमें भी कहा है कि- सभी नयोंका विभिन्न प्रकार का विवेचन सुनकर जो साधु चरण-करण अनुष्ठानमें स्थिर हुआ है वह हि साधु सर्वनयोंसे विशुद्ध माना गया है... चरण याने क्रिया तथा गुण याने ज्ञान अर्थात् क्रिया एवं ज्ञानवाला साधु हि मोक्षपदको पानेके लिये समर्थ होता है... यह यहां सारांश है... .. अब शीलांकाचार्यजी कहतें हैं कि- आचारांगसूत्र की व्याख्या स्वरूप यह संस्कृत टीका बनानेमें मैंने जो कुछ मोक्षमार्गके हेतुभूत पुन्य प्राप्त कीया हो, तो अब इस पुन्यकर्मसे यह संपूर्ण लोक याने जगत्के सभी जीव अशुभ कर्मोका विनाश करके मोक्षमार्गमें तत्पर बने ऐसी मै शुभ मंगल कामना करता हूं... अब ग्रंथके अंतमें नियुक्तिकी तीन गाथा का अर्थ इस प्रकार है.. ज्ञान एवं क्रियासे संपन्न ऐसे इस आचारांग सूत्रकी चौथी चूलिकाकी यह नियुक्ति यहां पूर्ण हुइ... अब पांचवी चूलिका निशीष सूत्रकी नियुक्ति कहुंगा...
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
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