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________________ %3 श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-3-28 (538) 507 कायसा, तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि, तस्सिमाओ .पंच भावणाओ भवंति। तत्थिमा पढमा भावणा-ईरियासमिए से णिग्गंथे नो अणईरियासमिएति, केवली बूया० अणईरियासमिए से णिग्गंथे पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं अभिहणिज्ज वा वत्तिज्ज वा परियाविज्ज वा लेसिज्ज वा उद्दविज्ज वा, ईरियासमिए से णिग्गंथे, नो ईरियाअसमिएत्ति पढमा भावणा। अहावरा दुच्चा भावणा-मणं परियावइ से णिग्गंथे, जे य मणे पावए सावज्जे सकिरिए अण्हयकरे छेयकरे भेयकरे अहिगरणिए पाउसिए पारियाविए पाणाइवाइए भूओवघाइए, तहप्पगारं मणं नो पधारिज्जा गमणाए, मणं परिजाणड से णिग्गंथे, जे य मणे अपावएत्ति दुच्चा भावणा। अहावरा तच्चा भावणा-वइं परिजाणड से णिग्गंथे, जा य वई पाविया सावज्जा सकिरिया जाव भूओवघाइया तहप्पगारं वइं नो उच्चारिज्जा, जे वई परिजाणड से णिग्गंथे, जावं वई अपावियत्ति तच्चा भावणा। अहावरा चउत्था भावणा-आयणभंडमत्त-निक्खेवणासमिए से णिग्गंथे, नो अणायाणभंड- मत्तनिक्खेवणासमिए, केवली बूयाo- आयाणभंड-मत्तनिक्खेवणाअसमिए से णिग्गंथे पाणाइं भूयाई जीवाइं सत्ताई अभिहणिज्जा वा जाव उद्दविज्ज वा, तम्हा आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिए से णिग्गंथे, नो आयाणभंडमत्तनिक्खेवणाअसमिएत्ति चउत्था भावणा। अहावरा पंचमा भावणा-आलोइयपाणभोयण-भोई से णिग्गंथे, नो अणालोइयपाणभोयणभोई, केवली बूया० अणालोयपाणभोयणभोई से णिग्गंथे पाणाणि वा, अभिहणिज्ज वा जाव उद्दविज्ज वा, तम्हा आलोइयपाणभोयणभोई से णिग्गंथे, नो अणालोइय-पाणभोयणभोइत्ति पंचमा भावणा। एयावता महव्वए सम्म काएणं फासिए पालिए तीरिए किट्टिए अवट्ठिए आणाए आराहिए यावि भवइ, पढमे भंते ! महव्वए पाणाइवायाओ वेरमणं // 536 // II संस्कृत-छाया : प्रथमं भदन्त ! महाव्रतं प्रत्याख्यामि, सर्वं प्राणातिपातं, तत् च सूक्ष्म वा बादरं वा असं वा स्थावरं वा, नैव स्वयं प्राणातिपातं करोमि , यावज्जीवं त्रिविधं त्रिविधेन मनसा वचसा कायेन, (तं) तस्य हे भदन्त ! प्रतिक्रमामि निन्दामि गहें आत्मानं च
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
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