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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-3-23 (531) 493 II संस्कृत-छाया : वरपटह भेरि-झल्लरी शङ्खशतसहसैः तूर्यैः / गगनतले धरणीतले तूर्यनिनाद: परमरम्यः // 530 / / सूत्र // 23 // // 531 // तत-विततं घणझुषिरं आउज्जं चउव्विहं बहुविहीयं / वाइंति तत्थ देवा बहूहिं आणट्टगसएहिं // 531 // II संस्कृत-छाया : तत-विततं धन-झुषिरं आतोयं चतुर्विधं बहुविधं वा वादयन्ति तत्र देवाः बहुभिः आनर्तकशतैः // 531 // III सूत्रार्थ : जरा मरण से विप्रमुक्त जिनवर के लिए शिविका लाई गई, जो कि जल और स्थल पर पैदा होने वाले श्रेष्ठ फूलों और वैक्रिय लब्धि से निर्मित पुष्प मालाओं से अलंकृत थी। - उस शिविका के मध्य में प्रधान रत्नों से अलंकृत यथा योग्य पाद पीठिकादि से युक्त, जिनेन्द्र देव के लिए सिंहासन का निर्माण किया गया था। जिनेन्द्र भगवान महावीर एक लाख रुपए की कीमत वाले क्षौम युगल (कास) के वस्त्र को धारण किए हुए थे और आभूषणों, मालाओं तथा मुकुट से अलंकृत थे। उस समय प्रशस्त अध्यवसाय एवं लेश्याओं से युक्त भगवान षष्ठ भक्त (बेले) की तपश्चर्या ग्रहण करके उस शिविका-पालकी में बैठे। जब श्रमण भगवान महावीर शिविका पर आरुढ़ हुए तो शकेन्द्र और इशानेन्द्र शिविका के दोनों तरफ खड़े होकर मणियों से जटित डंडे वाली चामरों को भगवान के ऊपर झुलाने लगे। सब से पहले मनुष्यों ने हर्ष एवं उल्लास के साथ भगवान की शिविका उठाई। उसके पश्चात् देव, सुर, असुर, गरुड़ और नागेन्द्र आदि देवों ने उसे उठाया। शिविका को पूर्व दिशा से सुर-वैमानिक देव उठाते हैं, दक्षिण से असुर कुमार, पश्चम से गरुड़ कुमार और उत्तर दिशा से नाग कुमार उठाते है।
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
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