________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-3-15/18 (523/526) 491 संस्कृत-छाया : शिबिकायां मध्यभागे दिव्यं वररत्नरूपप्रतिबिम्बितम् / सिंहासनं महार्ह सपादपीठं जिनवरस्य || 522 // सूत्र // 15 // // 523 // आलइयमालमउडो भासुरबुंदी वराभरणधारी। खोमिय वत्थनियत्थो जस्स य मुल्लं सयसहस्सं // 523 // संस्कृत-छाया : अलङ्कृतमालामुकुटः भासुरथरीरो वराभरणधारी। परिहितक्षौमिकवस्त्रः यस्य च मूल्यं शतसहसम् // 523 / / सूत्र // 16 // // 524 / / छडेण उभत्तेणं अज्झवसाणेण सुंदरेण जिणो। लेसाहिं विसुज्झंतो आराहइ उत्तमं सीयं // 524 / / संस्कृत-छाया : षष्ठेन तु भक्तेन अध्यवसानेन सुन्दरेण जिनः। लेश्याभि: विशुद्धयमान: आरोहति उत्तमां शिबिलाम् // 524 / / I * सूत्र // 17 // // 525 // सीहासणे निविट्ठो सक्कीसाणा य दोहि पासेहिं / वीयति चामराहिं मणिरयणविचित्तदंडाहिं // 525 // संस्कृत-छाया : सिंहासने निविष्टः शक्रेशानौ च द्वाभ्यां पार्धाभ्याम् / वीजयतः चामरैः मणिरत्नविचित्रदण्डैः // 525 // सूत्र // 18 // // 526 // पुट्विं उक्खिता माणुसेहिं साहट्ट रोमकूवेहिं। पच्छा वहंति देवा सुरअसुरा गरुलनागिंदा // 526 //