________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-3-12 (520) 489 - उससे नाना प्रकार की मणियों तथा कनक, रत्नादि से जटित एक बहुत बड़े कान्त मनोहर -रुप वाले देवछंदक का निर्माण करता है। उस देवछन्दक के मध्य भाग में नानाविध मणि, कनक, रत्नादि से खचित, शुभ, चारु और कान्तरुप एक विस्तृत पादपीठ युक्त सिंहासन का निर्माण किया। उसके पश्चात् जहां पर श्रमण भगवान महावीर थे वहां वह आया और आकर भगवान को वन्दन-नमस्कार किया और श्रमण भगवान महावीर को लेकर देवछन्दक के पास आया और धीरे 2 भगवान को उस देवछन्दक में स्थित सिंहासन पर बैठाया और उनका मुख पूर्व दिशा की ओर रखा। शतपाक और सहस्त्र पाक तैलों से उनके शरीर की मालिश की और सुगन्धित द्रव्य से शरीर का उद्वतन करके शुद्ध निमल जल से भगवान को स्नान करा, उसके बाद एक लाख की कीमत वाले विशिष्ट गोशीर्ष चन्दनादि का उनके शरीर पर अनुलेपन किया, उसके बाद भगवान को नासिका की वायु से हिलने वाले, तथा विशिष्ट नगरों में निर्मित, प्रतिष्ठित व्यक्तियों द्वारा प्रशंसित और कुशल कारीगरों के द्वारा स्वर्णतार से विभूषित, हंस के समान श्वेत, वस्त्र युगल को पहनाया। फिर हार, अर्द्धहार पहनाए तथा एकावली हार, लटकती हुई मालायें, कटि सूत्र, मुकुट और रत्नों की मालायें पहनाई। तदनन्तर ग्रन्थिम, वेष्टिम, पुरिम और संघातिम इम चार प्रकार की पूष्प मालाओं से कल्पवृक्ष की भान्ति भगवान को अलंकृत किया। इस प्रकार अलंकृत करने के पश्चात् इन्द्र ने पुनः वैक्रियसमुद्घात किया और उससे चन्द्रप्रभा नाम की एक विराट् सहस्र वाहिनी शिविका (पालकी) का निर्माण किया। यह शिविका ईहामृग, वृषभ, अश्व, मगरमच्छ, पक्षी, बन्दर, हाथी, रुरु, शरभ, चमरी, शार्दूल और सिंह आदि जीवों तथा वनलताओं एवं अनेक विद्याधरों के युगल, यंत्र योग आदि से चित्रित थी। सूर्य ज्योति के समान तेजवाली, तथा रमणीय जगमगाती हुई, हजारों चित्रों से युक्त और देदीप्यमान होने के कारण मनुष्य उसकी ओर देख नहीं सकता था, वह स्वर्णमय शिविका मोतियों के हारों से सुशोभित थी। उस पर मोतियों की सुंदर मालायें झूल रही थी तथा पद्मलता, अशोकलता, कुन्दलता एवं नाना प्रकार के अन्य वन लताओं से चित्रित थी। पांच प्रकार के वर्णोवाली मणियों, घंटियों और ध्वजा पताकाओं से उसका शिखर भाग सुशोभित हो रहा था इस प्रकार वह शिबिका दर्शनीय और परम सुन्दर थी। IV टीका-अनुवाद : सूत्रार्थ पाठ सिद्ध होने से टीका नहि हैं... V सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र में यह बताया गया है कि भगवान के दीक्षामहोत्सव में सम्मिलित होने के लिए चारों जाति के देव क्षत्रिय कुंड ग्राम में एकत्रित होते हैं। यह स्पष्ट है कि देव अपने