________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-3-7/10 (515/518) 483 पुटवसूराओ || 514 // II संस्कृत-छाया : संवत्सरेण भविष्यति अभिनिष्क्रमणं तु जिनवरेन्द्रस्य तस्मात् अर्थसम्पदा प्रवर्तते पूर्वे सूर्यात् // 514 // I सूत्र // 7 // // 515 // एगा हिरण्णकोडी अद्वेव अणूणगा सयसहस्सा। सूरोदयमाईयं दिज्जइ जा पायरासुत्ति // 515 // II संस्कृत-छाया : एका हिरण्यकोटी अष्टैव अन्यूनानि शतसहस्राणि / सूर्योदयादौ दीयते या प्रातराश इति // 515 // I सूत्र // 8 // // 516 // __ तिण्णेव य कोडिसया अट्ठासीइं च हंति कोडीओ। असिइं च सयसहस्सा एवं संवच्छरे दिण्णं // 516 // II संस्कृत-छाया : श्रीणि एव कोटि-शतानि अष्टाशीतिः च भवन्ति कोटयः / अशीतिं च शतसहस्राणि एतत् संवत्सरे दत्तं // 516 // I सूत्र // 9 // // 517 / / वेसमणकुंडधारी देवा लोगंतिया महिड्ढिया। बोहंति य तित्थयरं पण्णरससु कम्मभूमीसु // 517 // II संस्कृत-छाया : वैश्रमण-कुण्डधारिणः देवाः लोकान्तिका: महर्द्धिका: / बोधयन्ति च तीर्थकरं पञ्चदशसु कर्मभूमीषु // 517 // सूत्र // 10 // // 518 // बंभंभि य कप्पंमि बोद्धव्वा कण्हराडणो मज्झे। लोगंतिया विमाणा अट्ठस वत्था असंखिज्जा // 598 / /