________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-3-2 (510) 467 नक्षत्र में और एक अभिजित नक्षत्र में हुआ। परन्तु इतना उल्लेख मिलने पर भी उनके 5 कल्याणक माने जाते हैं। क्योंकि ऐसे प्रसंग बात को कल्याणक नहीं माना जाता है। केवल नक्षत्र की समानता के कारण उसका साथ में उल्लेख कर दिया जाता है। प्रस्तुत सूत्र में 'उस काल और समय में' इन दो शब्दों का प्रयोग किया गया है। इसमें 'काल' चौथे आरे का बोधक है और समय' जिस समय भगवान गर्भ आदि में आए उस समय का संसूचक है। काल से पूरे युग का और समय से वर्तमान काल का परिज्ञान होता भग-संपन्न व्यक्ति को भगवान कहा गया है। भग शब्द के 14 अर्थ होते हैं१. अर्क, 2. ज्ञान, 3. महात्मा, 4. यश, 5. वैराग्य, 6. मुक्ति, 7. रुप, 8. वीर्य (शक्ति ), 9. प्रयत्न, 10. इच्छा, 11. श्री, 12. धर्म, 13. ऐश्वर्य और 14. योनि। इनमें प्रथम और अन्तिम (अर्क और योनि) दो अर्थो को छोड़कर शेष सभी अर्थ भगवान में संघटित होते हैं। 'हत्थुत्तरे' शब्द का अर्थ है जिस नक्षत्र के आगे हस्त नक्षत्र है उसे 'हत्थुत्तरे' नक्षत्र कहते हैं। गणना करने से उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र ही आता है। इस विषय को विस्तार से स्पष्ट करते हुए सूत्रकार महर्षि सुधर्मस्वामी आगे का सूत्र कहते हैं...... I सूत्र // 2 // // 510 // समणे भगवं महावीरे इमाइ ओसप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए वीइक्कंताए, सुसमाए समाए वीइक्कंताए, सुसमदुस्समाए समाए वीइक्कंताए, दूसमसुसमाए समाए बहु वीइक्कंताए पण्णहत्तरीए वासेहिं मासेहि य अद्धनवमेहिं सेसेहिं जे से गिम्हाणं चउत्थे मासे अट्ठमे पक्खे आसाढ सुद्धे तस्स णं आसाढ सुद्धस्स छट्ठीपक्खेणं हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं महाविजयसिद्धत्थ पुप्फुत्तरवरपुंडरीय दिशासोवत्थियवद्धमाणाओ महाविमाणाओ वीसं सागरोवमाइं आउयं पालइत्ता आउक्खएणं भवक्खएणं चुए, चइत्ता इह खलु जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे दाहिणड्ढभरहे दाहिणमाहणकुंडपुरसंनिवेसंमि उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगोतस्स देवानंदाए माहणीए जालंधरसगुत्ताए सीहब्भवभूएणं अप्पाणेणं कुच्छिंसि गब्भं वक्कते। समणे भगवं महावीरे तिण्णाणोवगए यावि हुत्था चइस्सामित्ति जागइ चुएमित्ति जाणइ चयमाणे ण जाणड, सुहमे णं से काले पण्णत्ते। तओ णं समणे भगवं महावीरे हियाणुकंपएणं देवेणं जीयमेयंति कट्ट जे से वासाणं