________________ 466 2-3-1 (509) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन हत्थुत्तराहिं जाए, हत्थुत्तराहिं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए, हत्थुत्तराहिं कसिणे पडिपुण्णे अव्याघाए निरावरणे अणंते अणुत्तरे केवलवरणाणदसणे समुप्पण्णे, साइणा भगवं परिणिव्वुए // 509 // II संस्कृत-छाया : तस्मिन् काले तस्मिन् समये श्रमणः भगवान् महावीरः पञ्च-हस्तोत्तरे चाऽपि अभवत्, तद्यथा- हस्तोत्तरे च्युतः, च्युत्वा गर्भे व्युत्क्रान्त:, हस्तोत्तरे गर्भात् गर्भ आहृतः, हस्तोत्तरे जातः, हस्तोत्तरे मुण्डः भूत्वा अगारात् अनगारतां प्रवजितः, हस्तोत्तरे कृत्स्नं प्रतिपूर्ण अव्याघातं निरावरणं अनन्तं अनुत्तरं केवलवर ज्ञान-दर्शनं समुत्पन्नम्, स्वातौ च भगवान् परिनिर्वृत्तः // 509 // III सूत्रार्थ : उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर के पांच कल्याणक उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में हुए। जैसे कि- भगवान उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में देवलोक से च्यव कर गर्भ में उत्पन्न . हुए, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में ही गर्भ से गर्भान्तर में संहरण किए गए। उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में ही भगवान ने जन्म लिया। उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में ही भगवान मुंडित होकर सागार से अनगार-साधु बने और उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में ही भगवान ने. अनन्त, प्रधान, नियाघात, निरावरण, कृत्स्न, प्रतिपूर्ण केवल ज्ञान और केवल दर्शन को प्राप्त किया और स्वाति नक्षत्र में भगवान मोक्ष पधारे। IV टीका-अनुवाद : सूत्रार्थ पाठसिद्ध होने से टीका नहि है...... V सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि भगवान महावीर के पांच कल्याणक उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में हुए और एक स्वाति नक्षत्र में हुआ। भगवान का गर्भ में आना, गर्भ का गर्भान्तर में संहरण, जन्म, दीक्षा एवं केवल ज्ञान की प्राप्ति ये पांचों कार्य उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में हुए और स्वाति नक्षत्र में निर्वाण पद प्राप्त किया। इससे कल्याणक सिद्ध होते हैं, परन्तु वस्तुतः देखा जाए तो कल्याणक 5 ही हुए है। गर्भ संहरण को नक्षत्र साम्य की दृष्टि से साथ में गिन लिया गया है। परन्तु, इसे कल्याणक नहीं कह सकते। यह तो एक आश्चर्य जनक घटना है। यदि इसके उल्लेख मात्र से इसे कल्याणक माना जाए तो फिर भगवान ऋषभदेव के भी 6 कल्याणक मानने पड़ेंगे। क्योंकि, आगम में लिखा है कि भगवान के पांच कार्य उत्तराषाढ़ा