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________________ 10 2-1-1-1-1 (334) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन 5. प्राणवृत्ति = दश द्रव्य प्राणों की सुरक्षा के लिये 6. धर्मचिंता - - धर्मध्यान-शुक्ल ध्यान के लिये इन छह में से कोई भी कारण से आहार की इच्छावाला साधु गुहस्थों के घर में भिक्षा के लिये प्रवेश करता है, तब वहां आहार, पानी, खादिम और स्वादिम यदि रसज-जंतुओं से युक्त हो, पनक याने लील-फुल्ल से युक्त हो, बीज (गेहुं-जवार) आदि से युक्त हो तथा हरित याने दुर्वा अंकुर आदि से युक्त (मिश्रित) हो अथवा शीत जल से आर्द्र हो, अथवा सचित्त रजःकरण से युक्त हो, तब ऐसे अशुद्ध अशन आदि दाता के हाथ में हो या उनके पात्र याने बरतन में हो, उनको अप्रासक याने सचित्त और आधाकर्मादि दोष के कारण से अनेषणीय माननेवाला वह साधु या साध्वीजी आहारादि की प्राप्ति होने पर भी उन आहारादि को ग्रहण न करें, यह बात उत्सर्ग-विधि से कही, अब अपवाद-विधि से कहतें हैं कि- द्रव्य-क्षेत्र, काल, एवं भावादि को जानकर उन आहारादि को ग्रहण भी करें, वहां द्रव्य याने-वह आहारादि वस्तु दुर्लभ हो... क्षेत्र याने- साधारण द्रव्य की प्राप्ति भी न हो, एवं काल-भावादि को जानकर उन आहारादि को ग्रहण भी करें... वहां द्रव्य याने-वह आहारादि वस्तु दुर्लभ हो, क्षेत्र यानेसाधारण द्रव्य की प्राप्ति भी न हो, ऐसा अथवा रजःकण आदि युक्त क्षेत्र हो, काल-दुष्काल याने दुर्भिक्ष का समय हो और भाव याने ग्लानि-रोग-पीडा आदि हो, अथवा बाल, शैक्ष, वृद्ध, असहिष्णुतादि हो, इत्यादि कारणों के होने पर गीतार्थ साधु अल्प-बहुत्व याने लाभ-हानि का विचार करके उन आहारादि को ग्रहण भी करें... अब कभी अनुपयोग से या एका एक जल्दी में अस-बीज आदि से ससक्त आहारादि प्राप्त हो तब उन आहारादि के परठ ने की विधि कहतें हैं, यहां अनुपयोग की चतुर्भंगी होती है... अनुपयोगी दाता अनुपयोगी साधु अनुपयोगी दाता उपयोगी साधु उपयोगी दाता अनुपयोगी साधु उपयोगी दाता उपयोगी साधु अब उन अशुद्ध आहारादि को ग्रहण करके साधु एकान्त-निर्जन भूमि में जाता है, उस निर्जन याने स्थंडिल भूमि के अनापात-असंलोक की चतुर्भगी होती है.. 1. अनापात असंलोक अनापात संलोक
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
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