________________ 428 2-2-3-3-2 (500) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन के इच्छावाले मनुष्य जहां गृद्धपृष्ठ मरण की भांति रहतें हो, या तो जहां मरने के इच्छावाले मनुष्य वृक्ष के उपर चढकर गिर पडतें हैं, या तो पर्वत के शिखर उपर चढकर आत्मघात स्वरुप खीण में कूद पडतें हैं अथवा विष का भक्षण करे या अग्निस्नान करतें हैं ऐसे स्थान में साधु उच्चारादि न करें... तथा जहां देवमंदिर आदि हो वहां भी साधु उच्चारादि (मल-मूत्र) न करें... एवं देवमंदिर संबंधित अट्टालक याने ओटले जहां हो, ऐसी भूमि में भी साधु उच्चारादि न करें... तथा त्रिक याने तीन रास्ते, चतुष्क याने चार रास्ते और चत्वर याने चोराहा इत्यादि स्थानो में भी उच्चारादि (मल-मूत्र आदि) का विसर्जन न करें... तथा वह साधु या साध्वीजी म. जहां अंगारे जलाये जाते हो या मृतकों का दाह स्थानश्मशान आदि भूमि में भी उच्चारादि मल-मूत्र न करें... तथा नदी के तीर्थस्थानो में कि- जहां लोग पुण्य के लिये स्नान करते हैं... तथा पंक याने कादव के स्थान में कि- जहां लोग धर्मपुण्य के लिये आलोटतें हैं... तथा जल का प्रवाह स्थान कि- जो लोक में पूज्य माना गया है... अथवा तालाब के जल में प्रवेश करने का मार्ग... अथवा खेत में जल ले जानेवाली नीक आदि स्थानों में साधु मल-मूत्रादि का त्याग न करें... तथा वह साधु या साध्वीजी म. नई मिट्टी की खदान में तथा गाय-आदि पशुओं के नये गोचर स्थान में या सामान्य से गोचर भूमि में उच्चारादि न करें.... तथा डाल-प्रधान शाकवाले खेत में या पत्तेवाली सब्जी के खेत में तथा मूल-प्रधान सब्जी के खेत आदि भूमि में साधु उच्चारादि न करें... तथा गेहूं, चने आदि अनाज के खेतों में भी उच्चारादि न करें तथा पत्र, पुष्प, एवं फल आदिवाले खेत-भूमि में भी साधु उच्चारादि मल-मूत्र न करें.... अब कहां उच्चारादि (मल-मूत्र) करना चाहिये यह बात अब आगे के सूत्र से कहेंगे... सूत्रसार: प्रस्तुत सूत्र में सार्वजनिक उपयोगी एवं धर्म स्थानों पर मल-मूत्र के त्याग करने का निषेध किया गया है। साधु को शाली (चावल), गेहूं आदि के खेत में, पशुशाला में, भोजनालय / में आम आदि के बगीचों में, प्याऊ में, देव स्थानों पर, नदी पर, कुएँ आदि स्थानों पर मलमूत्र का त्याग नहीं करना चाहिए। व्यवहारिक दृष्टि से भी यह कार्य अच्छा नहीं लगता है और उनके रक्षक के मन में क्रोध के कारण अनिष्ट होने की ही संभावना रहती है। देवालय, नदी, सरोवर आदि स्थानों को कुछ लोग पूज्य मानते हैं, जहां केवल नदी के पानी को ही नहीं, किंतु उसके कीचड़ को भी पवित्र मानते हैं। इसलिए ऐसे स्थानों पर साधु को मल-मूत्र का त्याग नहीं करना चाहिए।