________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी- टीका 2-2-3-3-2 (500) 427 इसीप्रकार जहां काष्ठ जलाकर कोयले बनाए जाते हों, क्षार बनाई जाती हो, मृतक जलाए जाते हों, एवं मृतक स्तूप और मृतक चैत्य मृतक मन्दिर हों, ऐसे स्थानों पर भी मल मूत्र को न परठे। नदी के तीर्थ स्थानों (तट) पर, नदी के तीर्थ रुप कर्दम स्थानों पर एवं जल के प्रवाह रुप पूज्य स्थानों में तथा खेत और उद्यान को जल देने वाली नालियों में मल मंत्र का परित्याग न करे। मिट्टी की नई खदानों में, नई गोचर भूमि में, सामान्य गौओं के चरने के स्थानों और खदानों में, मल मूत्रादि का परित्याग न करें। डाल प्रधान शाक के खेतों में, पत्र प्रधान शाक के खेतों में, और मूली गाजर आदि के खेतों में तथा हस्तंकर नामक वनस्पति के क्षेत्र में, इस प्रकार के स्थानों मे भी मल-मूत्र को न त्यागे / बीयक के वन में, शणी के वन में, धातकी (वृक्ष विशेष) के वन में, केतकी के वन में, आम वृक्ष के वन में, अशोक वृक्ष के वन में, नाग और पुन्नाग वृक्ष के वन में, चूलक वृक्ष के वन में और इसी प्रकार के अन्य पत्र, पुष्प, फलों, तथा बीज और हरी वनस्पति से युक्त वन में मल मूत्र को न त्यागे। IV. -- टीका-अनुवाद : वह साधु या साध्वीजी म. जब जाने कि- इस स्थंडिल-भूमि में गृहपति या गृहपति के पुत्र आदि कंद, बीज आदि रखते थे, रख रहे हैं, और रखते रहेंगे तब ऐसी उस स्थंडिलभूमि में साधु इहलोक के एवं परलोक के अपाय के भय से उच्चारादि याने मल-मूत्रादि न करें... तथा जिस स्थंडिल भूमि में गृहपति आदि लोग शाली (चावल) आदि बोते थे, बो रहे हैं, और बोते रहेंगे तब ऐसी उस स्थंडिल भूमि में साधु उच्चारादि याने मल-मूत्रादि न करें... तथा वह साधु म. जब ऐसा जाने कि- इस स्थंडिलभूमि में कचरे का ढेर या तृणघास या छोटे छोटे तृण या कादव-कीच्चड या लकडी के खीले, गन्ने के डंडे, या गहरे खड़े, या गुफाएं या किल्ले की दीवार इत्यादि स्वरूप वह स्थंडिल भूमि समतल हो या विषमतल हो तब आत्मविराधना एवं संयम विराधना के भय से साधु उस स्थंडिल भूमि में उच्चारादि (मलमूत्र) न करें... तथा वह साधु या साध्वीजी म. जब जाने कि- इस स्थंडिल भूमि में मनुष्यों के रसोई बनाने के चूल्हे हैं या भैंस आदि को बांधने के खीले हैं, तब ऐसी स्थंडिल भूमि में लोक विरुद्ध एवं जिनशासन की हीलना-निंदा का दोष न हो इस कारण से वहां उच्चारादि (मल-मूत्र) न करें... तथा वह साधु देखे-जाने कि- इस स्थंडिल भूमि में मनुष्य को लटकाने का स्थान है, या गीध आदि के भक्षण के लिये लोही-खून आदि से शरीर के उपर विलेपन करके मरने