________________ श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन एवं बाह्य भेद से दो प्रकार का है, तथा मन, वचन एवं काया के योग के भेद से वह संयम तीन प्रकार से है, तथा चार याम (महाव्रत) के भेद से वह संयम चार प्रकार से है, तथा पांच महाव्रत के भेद से संयम पांच प्रकार से कहा है, एवं रात्रिभोजन विरमण के साथ पूर्वोक्त पांच महाव्रत स्वरूप वह संयम छह (6) प्रकार से है, इत्यादि प्रक्रिया के द्वारा भेद-प्रभेद करते-करते अट्ठारह हजार शीलांग स्वरूप वह संयम अट्ठारह हजार भेद से कहा गया है। तो फिर आगम ग्रंथो में जहां कहीं पांच महाव्रत स्वरूप ही संयम क्यों कहा गया है ? इस प्रश्न का उत्तर नियुक्तिकार नियुक्तिकी गाथा से कहतें हैं... नि. 298 पांच महाव्रत स्वरूप कहा गया संयम का स्वरूप कथन करने में, विभाग करने में एवं समझने में सुगम होता है अतः पांच महाव्रत स्वरूप संयम शास्त्र में दिखाया गया है। यह पांच महाव्रत स्वरूप संयम अखंडित होने पर ही सफल होता है अतः पांच महाव्रत स्वरूप संयम की रक्षा करने के लिये नियुक्तिकार नियुक्ति-गाथा कहतें हैं। नि. 299 पांच महाव्रतों की रक्षा के लिये एक एक महाव्रत की पांच पांच भावनाएं होती है, और वे पच्चीस भावनाएं इस अन्य नाम के दुसरे श्रुतस्कंध में कही जाएगी, इसलिये यह द्वितीय श्रुतस्कंध शस्त्रपरिज्ञा नाम के पहले अध्ययन के अंतर्गत ही जानना चाहिए! अब चूडा याने चूलिकाओं का अपना अपना परिमाण कहतें हैं / नि.300 पिंडैषणा अध्ययन से लेकर अवग्रहप्रतिमा पर्यंत के सात अध्ययनों की यह पहली चूलिका है, तथा सात सप्लैक का नाम की दुसरी चूलिका है तथा भावना नाम की तीसरी चूलिका है और विमुक्ति नाम की चौथी चूलिका है, तथा आचारप्रकल्प स्वरूप निशीथ अध्ययन पांचवी चूलिका है। अब “चूडा' के नामादि छह (E) निक्षेप कहते हैं उन में नाम एवं स्थापना निक्षेप सुगम हैं... द्रव्य चूडा तद्व्यतिरिक्ता के तीन प्रकार हैं 1. सचित्त द्रव्य चूडा - कुकडे (मुर्गे) को होती है... 2. अचित्त द्रव्य चूडा - मुकुट के चूडामणि है, 3. मिश्र द्रव्य चूडा - मोर को होती है... क्षेत्र चूडा - लोक के निष्कुट स्वरूप है