________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-7-1-3 (491) 389 भूमीए वा ठवित्ता इमं खलु, त्ति आलोइज्जा, नो चेव णं सयं पाणिणा परपाणिंसि पच्चप्पिणिज्जा // 491 // II संस्कृत-छाया : सः आगन्तागारेषु वा, यावत् सः किं तत्र अवग्रहे एव अवगृहीते ये तत्र साधर्मिका अन्यसाम्भोगिकाः समनोज्ञाः उपागच्छेयुः ये तेन स्वयं एषितुं पीठः वा फलक: वा शय्या वा संस्तारकः वा तेन ते साधर्मिकाः अन्यसाम्भोगिकाः समनोज्ञाः उपनिमन्त्र्येरन्, न च एव परानीतं अवगृह्य उपनिमन्त्रयेत्। सः आगन्तागारेषु वा यावत् सः किं पुनः तत्र अवग्रहे एव अवगृहीते ये तत्र गृहपतीनां वा गृहपतिपुत्राणां वा सूची वा पिष्पलकः वा कर्णशोधनकः वा नखच्छेदनक: वा तं आत्मनः एकस्य अर्थाय प्रातिहारिकं याचित्वा न अन्यान्यस्मै दद्यात् वा अनुप्रदद्यात् वा, स्वयं करणीयं इति कृत्वा, स: तं आदाय तत्र गच्छेत्, गत्वा पूवमेव उत्तानके हस्ते कृत्वा भूमौ वा स्थाप्य इमं खलु, इति आलोकयेत्, न च एव स्वयं पाणिना परपाणौ प्रत्यर्पयेत् // 491 // III सूत्रार्थ : आज्ञा प्राप्त कर धर्मशाला आदि में ठहरे हुए साधु के पास यदि उत्तम आचार वाले असंभोगी साधर्मी-साधु अतिथिरूप में आजाएं तो वह स्थानीय साधु अपने गवेषणा किए हुए पीढ़, फलक, शय्या-संस्तारक आदि के द्वारा असांभोगिक साधुओं को निमंत्रित करे, परन्तु दूसरे द्वारा गवेषित पीढ़, फलकादि द्वारा निमंत्रित न करे। - यदि कोई अन्य साधु गृहस्थ के पास से सूई, कैंची, कर्णशोधनिका और नखछेदक आदि उपकरण अपने प्रयोजन के लिये मांग कर लाया हो तो वह उन उपकरणों को अन्य भिक्षुओं को न दे। किन्तु अपना कार्य करके गृहस्थ के पास जाए और लम्बा हाथ करके उन उपकरणों को भूमि पर रख कर गृहस्थ से कहे कि यह तुम्हारा पदार्थ है, इसे संभाल लो, देख लो... परन्तु उन सूई आदि वस्तुओं को साधु अपने हाथ से गृहस्थ के हाथ में न रखे। IV टीका-अनुवाद : पूर्व के सूत्र की तरह यहां जानीयेगा, किंतु जो साधु असांभोगिक हैं उन्हें पीठ, फलक आदि के लिये निमंत्रण करें... क्योंकि- उन्हे यह पीठ आदि हि उपभोग में आ शकतें हैं... आहारादि नहिं... तथा वहां उस मकान में गृहस्थ से अवग्रह की अनुमति लेने के बाद जो मनुष्य