________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-7-1-2 (490) 387 एवं परानीतं अवगृह्य, उपनिमायेत् // 490 / / III सूत्रार्थ : संयमशील साधु या साध्वी धर्मशाला आदि में जाकर सोच-विचार कर उचित स्थान की आज्ञा मांगे। उस स्थान का जो स्वामी या अधिष्ठाता / उससे आज्ञा मांगते हुए कहेआयुष्मन् गृहस्थ ! जिस प्रकार तुम्हारी इच्छा हो अर्थात् जितने समय के लिए जितने क्षेत्र में निवास करने की तुम आज्ञा दोगे उतने काल तक उतने ही क्षेत्र में हम निवास करेंगे, अन्य जितने भी साधर्मिक साधु आएंगे वे भी उतने काल तक उतने क्षेत्र में ठहरेंगे। उक्तकाल के बाद वे और हम विहार कर जाएंगे। इस प्रकार गृहस्थ की आज्ञा के अनुसार वहां निवसित साधु के पास यदि अन्य साधु कि- जो साधर्मिक हैं, समय सामाचारी वाले हैं और उद्यत विहार करने वाले हैं, वे यदि अतिथि के रूप में आजाएं तो वह साधु अपने द्वारा लाए हुए आहारादि ग्रहण हेतु उसे आमंत्रण करे, परन्तु अन्य के लाए हुए आहारादि के लिए उन्हें निमंत्रित न करे। IV टीका-अनुवाद : वह साधु या साध्वीजी म. धर्मशाला आदि में प्रवेश करके देखे कि- यह क्षेत्र साधुओं के वसति (निवास) के लिये योग्य है, तब उस क्षेत्र-वसति की याचना करे... वह इस प्रकारउस घर का जो स्वामी हो या उस घर का जो देखभाल करनेवाला हो उससे उस घर में रहने के लिये याचना करे... वह इस प्रकार- हे आयुष्मन् ! गृहपति ! आप जितने समय-काल के लिये एवं जितने क्षेत्र की अनुमति-आज्ञां दोगे उतने समय तक उतने क्षेत्र में हम रहेंगे... हे आयुष्मान् ! जितने समय के लिये आपके दीये हुए इस घर में हमारे जितने भी साधु आएंगे उतना हम अवग्रह करेंगे याने आपके घर में रहेंगे... बाद में हम सभी विहार करेंगे... अब अवग्रह ग्रहण करने के बाद की विधि कहतें हैं... वह इस प्रकार-वहां पर जो कोइ प्राघूर्णक साधु कि जो एक सामाचारी वाले हो, समनोज्ञ हो, उद्यतविहारी हो, ऐसे साधुजन विहार करते हुए पधारे तब वह साधु या साध्वीजी म. परलोक की शुभ कामना से उनके आहारादि हेतु स्वयं हि गवेषणा-शोध करे... यदि वे स्वयं हि आहारादि को गवेषणा हेतु साथ में आये हुए हो, तो वह साधु स्वयं हि जो आहारादि गवेषणा करके लाये हुए हो, उन आहारादि को ग्रहण करने के लिये उन साधुओं को निमंत्रण करे... जैसे कि- हे साधुजन ! मैंने लाये हुए इस आहारादि को आप ग्रहण करके मेरे उपर उपकार कीजीये... किंतु अन्य साधुने लाये हुए आहारादि के लिये वह साधु उनको निमंत्रण न करें, किंतु स्वयं खुदने हि लाये हुए आहारादि