________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-4-1-2 (467) 313 16. परोक्ष वचन-परोक्ष का बोधक वचन यथा-स देवदत्तः-वह देवदत्त है। अब शब्द का कृतकत्व सिध्ध करते हुए सूत्रकार महर्षि सुधर्म स्वामी आगे का सूत्र कहतें हैं... I सूत्र // 2 // // 467 // से भिक्खू वा० से जं पुण जाणिज्जा- पुट्विं भासा अभासा भासिज्जमाणी भासा भासा, भासा-समय वीइक्कंता च णं भासिया भासा अभासा / से भिक्खू वा० से जं पुण जाणिज्जा- जा य भासा सच्चा 1. जा य भासा मोसा, 2. जा य भासा सच्चामोसा, 3. जा य भासा असच्चामोसा, 4. तहप्पगारं भासं सावज्जं सकिरियं कक्कसं कडुयं निगुरं फरुसं अण्हयकरि छेयणकरिं भेयणकरिं परियावणकरिं उद्दवणकरिं भूओवधाइयं, अभिकंख नो भासिज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण जाणिज्जा, जा य भासा सच्चा सुहुमा, जा य भासा असच्चामोसा तहप्पगारं भासं असावज्जं जाव अभूओवघाइयं अभिकंख भासं भासिज्जा || 467 // II संस्कृत-छाया : सः भिक्षुः वा० स: यत् पुन: जानीयात्- पूर्व भाषा अभाषा भाष्यमाणा भाषा भाषा, भाषा-समयव्यतिक्रान्ता च भाषिता भाषा अभाषा। - सः भिक्षुः वा० सः यत् पुनः जानीयात्- या च भाषा सत्या 1. या च भाषा मृषा, 2. या च भाषा सत्या-मृषा, 3. या च भाषा असत्यामृषा, 4. तथाप्रकारां भाषां सावद्यां सक्रियां कर्कशां कटुकां निष्ठुरां परुषां कर्माश्रवकरी छेदनकरी भेदनकरी परितापनकरी अपद्रावणकरीं भूतोपघातिकां अभिकाक्ष्य न भाषेत। स: भिक्षुः वा भिक्षुणी वा सः यत् पुनः जानीयात्- या च भाषा सत्या सूक्ष्मा, या च भाषा असत्यामृषा, तथाप्रकारां भाषां असावद्यां यावत् अभूतोपघातिकां अभिकाझ्य भाषां भाषेत // 467 // III सूत्रार्थ : संयमशील साधु या साध्वी को भाषा के विषय में यह जानना चाहिए कि भाषावर्गणा के एकत्रित हुए पुद्गल बोलने से पहले अभाषा और भाषण करते समय भाषा कहलाते हैं, और भाषण करने के पश्चात् वह बोली हुई भाषा अभाषा हो जाती है। साधु या साध्वी को