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________________ 312 2-1-4-1-1 (466) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन (प्राकृत०) घड़ो, पड़ो, कण्हो, साहू इत्यादि। 6. नपुंसक लिंग व०- पत्रम्, ज्ञानम्, चारित्रम्, दर्शनम् इत्यादि। पत्तं, नाणं, चरित्तं, दसणं इत्यादि / अध्यात्म वचन- जिस वचन को बोलने का चित्त में निश्चय किया गया हो; फिर उसको छिपाने के लिए अन्य वचन के बोलने का विचार होने पर भी अकस्मात् वही वचन मुख से निकले उसे अध्यात्म वचन कहते हैं। जैसे कि- कोई वणिक रुई के व्यापार के लिए किसी अन्य व्याम या नगर में गया, उसने अपने मन में निश्चय किया कि मैं किसी अन्य व्यक्ति के पास रुई का नाम नहीं लूंगा। परन्तु जब वह तृषातुर होकर किसी कूप पर पानी पीने के लिए गया तब उसने वहां पानी भरने वालों से कहा कि मुझे शीघ्र ही रुई पिलाओ ! इसी का नाम अध्यात्म वचन है। वृत्तिकार भी यही लिखते हैं- "अध्यात्म-हृदयगतं-तत्परिहारेणान्यद् भणिष्यतस्तदेव सहसा पतितम् / " उपनीत वचन- प्रशंसा युक्त वचन को उपनीत वचन कहते हैं, यथा-यह स्त्री रूपवती है इत्यादि। अपनीत व०- निन्दा युक्त वचन अपनीत वचन है, यथा-यह स्त्री कितनी कुरुपा-भद्दी दिखाई देती है। उपनीतापनीत व०- पहले प्रशंसा करना और बाद में निन्दा करना इसे उपनीतापनीत वचन कहते हैं, यथा-यह स्त्री सुरुपा-रूपवती तो है परन्तु व्यभिचारिणी है। . अपनीतोपनीत व०- पहले निन्दा और पीछे प्रशंसा युक्त वचन अपनीतोपनीत वचन है। यथा-यह स्त्री रूप हीन होने पर भी सदाचारिणी है। अतीत काल वचन- भूतकाल के बोधक वचन को अतीतकाल वचन कहते हैं। यथा (घटं कृतवान् देवदत्तः) देवदत्त ने घड़े को बनाया था। 13. वर्तमान काल वचन-वर्तमान काल का बोधक वचन, यथा-करोति, पठति-करता है, पढ़ता है इत्यादि। 14.. अनागत काल वचन-भविष्यत् काल का बोधक वचन, यथा-करिष्यति, पठिष्यति, . गमिष्यति-करेगा, पढ़ेगा और जावेगा इत्यादि। 15. प्रत्यक्ष वचन-प्रत्यक्ष के बोधक वचन को प्रत्यक्ष वचन कहते हैं, यथा- देवदत्तोऽयम् यह देवदत्त है, इत्यादि।
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
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