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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-4-1-1 (466) 311 भाषा के स्वरूप के सम्बन्ध में यहां कुछ बताना अनुचित एवं अप्रासंगिक नही होगा। साधारणतया मुंह द्वारा बोले जाने वाले शब्दों के समूह को भाषा कहते हैं। जैन आगमों में शब्द को पुद्गल माना गया हैं। कुछ भारतीय दर्शन शब्द को आकाश का गुण मानते हैं। परन्तु यह मान्यता उचित प्रतीत नहीं होती। क्योंकि आकाश अरूपी है, अतः उसका गुण भी अरूपी ही होगा। परन्तु, शब्द रूपी है, इस लिए वह अरूपी आकाश का गुण नहीं हो सकता। और आज वैज्ञानिक साधनों ने भी यह स्पष्ट कर दिया है कि शब्द आकाश का गुण नहीं, किंतु स्वयं एक मूर्त पदार्थ है। वह पुद्गल के द्वारा रोका जाता है, ग्रहण किया जाता है और स्थानान्तर में भी भेजा जाता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि शब्द आकाश का गुण नहीं, किंतु भाषा वर्गणा के पुद्गलों का समूह है। तथा भाषा वर्गणा के पुद्गल होतें हैं, अचित्त एवं वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श से युक्त हैं तथा परिवर्तनशील हैं। व्यक्ति द्वारा बोली जाने वाली भाषा चार प्रकार की मानी गई है- 1. सत्य भाषा, 2. असत्य भाषा, 3. मिश्र भाषा (जिसमें सत्य और असत्य की मिलावट हो) और 4. असत्यामृषा (जिस भाषा में न झूठ है और न सत्य है, जिसे व्यवहार भाषा कहतें है)। इसमें साधु पहली और चौथी अर्थात् सत्य एवं व्यवहार भाषा का प्रयोग कर सकता है। परन्तु, साधु को दूसरी और तीसरी अर्थात् असत्य एवं मिश्र भाषा का प्रयोग करना नहीं कल्पता। इससे यह स्पष्ट हो गया कि साधु को भाषा के दोषों का परित्याग करके विवेकपूर्वक बोलना चाहिए। भाषा के दोषों से बचने के लिए सूत्रकार ने 16 प्रकार के वचनों का उल्लेख किया है। इसमें प्रयुक्त द्विवचन संस्कृत व्याकरण के अनुसार रखा गया है। क्योंकि प्राकृत में एक वचन और बहुवचन ही होता है। द्विवचन का प्रयोग संस्कृत में होता है। अतः उक्त भाषा को ध्यान में रखकर ही सूत्रकार ने द्विवचन शब्द का उल्लेख किया हो ऐसा प्रतीत होता है। ये वचनों के 16 प्रकार इस प्रकार से हैं एक वचन-(संस्कृत भाषा में)- वृक्षः, घटः, पटः इत्यादि / (प्राकृत भाषा में)-वच्छो-रुक्खो , घड़ो, पड़ो इत्यादि / द्विवचन-वृक्षौ, घटौ, पटौ, इत्यादि, प्राकृत में द्विवचन होता ही नहीं। बहुवचन-वृक्षाः, घटाः, पटाः इत्यादि। (प्राकृत में)-वच्छा, रुक्खा , घड़ा, पड़ा इत्यादि। स्त्रीलिंग वचन- (सं0) कन्या, वीणा, राजधानी इत्यादि। (प्रा०) कन्ना, वीणा, रायहाणी इत्यादि। पुरुष वचन-(सं0) घटः, पटः, कृष्णः , साधुः इत्यादि।
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
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