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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-4-1-1 (466) 307 वचन के अनाचार को (जिनका पूर्व के मुनियों ने आचरण नहीं किया) जानने का प्रयत्न करे। जो मुनि क्रोध, मान, माया और लोभ से वचन बोलते हैं अर्थात् इनके वशीभूत, होकर भाषण करते हैं, तथा जो किसी के दोष को जानते हुए अथवा न जानते हुए भी उसके मर्म को उद्घाटन करने के लिए कठोर वचन बोलते हैं ऐसी भाषा सावध है अतः विवेकशील साधु इसे छोड़ दे। और वह साधु निश्चयात्मक भाषा भी न बोले, जैसे कि- कल अवश्य वर्षा होगी, अथवा नहीं होगी। यदि कोई साधु आहार के लिए मया हो, तब अन्य साधु उसके लिए ऐसा न कहे किवह साधु अशनादि चतुर्विध आहार अवश्य लेकर आएगा, अथवा बिना लिये ही आएगा। यदि किसी साधु को भिक्षार्थ गये हुए किसी कारण से कुछ विलम्ब हो गया हो, तो संयमशील साधु अन्य साधुओं के प्रति इस प्रकार भी न कहे कि वह साधु-जोकि भिक्षा के लिए गया हुआ है, वहां पर भोजन करके आएगा अथवा आहार किए बिना ही आएगा। इस तरह भूतकाल की किसी बात का जब तक निश्चय न हो जाए तब तक निश्चयात्मक वचन न बोले जैसे कि- राजा अवश्य आया था, अथवा (वर्तमानकाल में) आता है अथवा (भविष्यत् काल में) अवश्य आएगा, अथवा तीनों काल में न आया था, न आता हैं और न आएगा, इस प्रकार के निश्चयात्मक वचन भी न बोले। जिस प्रकार काल के विषय में कहा गया है उसी प्रकार क्षेत्र के विषय में भी समझना चाहिए। यथा भूतकाल में अमुक व्यक्ति नगरा नहीं आया था, इसी प्रकार अमुक व्यक्ति आता है या नहीं आता है, और अमुक व्यक्ति अमुक नगरादि में आएगा अथवा नहीं आएगा। तात्पर्य कि जिस विषय में वस्तु तत्त्व का पूर्णतया निश्चय न हो उसके विषय में निश्चयात्मक वचन साधु को नहीं बोलना चाहिए। अतः विचार पूर्वक निश्चय करके भाषा समिति से समित हआ साध, भाषा का व्यवहार करे अर्थात भाषा समिति का ध्यान रखता हुआ संयत भाषा में बोले। एक वचन, द्विवचन और बहुवचन, तथा * 'स्त्रीलिंग वचन, पुरुष लिंग वचन और नपुंसक लिंग वचन, एवं अध्यात्म वचन प्रसंशा युक्त वचन, निन्दायुक्त वचन, निन्दा और प्रशंसा युक्त वचन, भूतकाल सम्बन्धि वचन, वर्तमानकाल सम्बन्धि वचन और भविष्यत काल सम्बन्धि वचन, तथा प्रत्यक्ष और परोक्ष वचन आदि को भली भांति जानकर बोले। यदि उसे एक वचन बोलना हो तो वह एक वचन बोले यावत् परोक्ष वचन पर्यन्त जिस वचन को बोलना हो उसी को बोले। तथा स्त्रीवेद, पुरुष वेद और नपुंसद वेद अथवा स्त्रीपुरुष और नपुंसक वेद या जब तक निश्चय न हो, तब तक निश्चयात्मक वचन न बोले, जैसेकि- यह स्त्री ही है इत्यादि 2. अतः विचार पूर्वक भाषा समिति से युक्त हुआ साधु भाषा के दोषों को त्यागकर संभाषण करे। साधु को भाषा के चारों भेदों को भी जानना चाहिये, सत्य भाषा 2. मृषा-असत्य भाषा, 3. मिश्र भाषा और 4. असत्यामृषा- जो न सत्य है, न असत्य और न सत्यासत्य किन्तु असत्यामृषा या व्यवहार भाषा के नाम से प्रसिद्ध है। जो कुछ मैं कहता हूं- भूतकाल में जो अनन्त तीर्थकर हो चुके हैं और वर्तमान काल में जो तीर्थंकर हैं, तथा भविष्यित् काल में
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
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