________________ 294 2-1-3-3-2 (462) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन को अपने हाथ से स्पर्श न हो... तथा वह साधु आचार्यादि के साथ जा रहा हो तब मार्ग में कोड मुसाफिर प्रश्न पुछे तब आचार्य आदि के अनुमति के बिना उत्तर न दें, तथा आचार्यादि जब जवाब देतें हो तब बीच में कुछ भी न बोलें... इस प्रकार मार्ग में जाता हुआ वह साधु संयमी होकर युगप्रमाण (चार हाथ) भूमी पे नजर रखता हुआ रत्नाधिकों के अनुक्रम से चलें... यह यहां सारांश है... इसी प्रकार आगे के दो सूत्र भी आचार्य एवं उपाध्याय की तरह अन्य रत्नाधिक साधु के साथ चलते वख्त भी हाथ से हाथ का स्पर्श एवं वार्तालाप के बीच बात आदि न करें... इत्यादि स्वयं जानीयेगा... V सूत्रसार: / प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि- साधु आचार्य, उपाध्याय एवं रत्नाधिक (अपने से दीक्षा में बड़े साधु) के साथ विहार करते समय अपने हाथ से उनके हाथ का स्पर्श करता हुआ न चले और यदि रास्ते में कोई व्यक्ति मिले और वह पूछे कि आप कौन हैं ? कहां से आ रहे हैं ? और कहां जाएंगे ? आदि प्रश्नों का उत्तर साथ में चलने वाले आचार्य, उपाध्याय या बड़े साधु दे, परन्तु छोटे साधु को न तो उत्तर देने का प्रयत्न करना चाहिए और न बीच में ही बोलना चाहिए। क्योंकि आचार्य आदि के हाथ एवं अन्य अङ्गोंपांग का अपने हाथ आदि से स्पर्श करने से तथा वे किसी के प्रश्नों का उत्तर दे रहे हों उस समय उनके बीच में बोलने से उनकी अशातना होगी और वह साधु भी असभ्य सा प्रतीत होगा। अतः उनकी विनय एवं शिष्टता का ध्यान रखते हुए साधु को विवेक पूर्वक चलना चाहिए। . ___ यदि कभी आचार्य, उपाध्याय या बड़े साधु छोटे साधु को प्रश्नों का उत्तर देने के लिए कहे तो वह उस व्यक्ति को उत्तर दे सकता है और इसी तरह यदि आचार्य आदि के शरीर में कोई वेदना हो गई हो या चलते समय उन्हें उसके हाथ के सहारे की आवश्यकता हो तो वह उस स्थिति में उनके हाथ को सहारा दे सकता है। यहां जो निषेध किया गया है, वह बिना किसी कारण से एवं उनकी आज्ञा के बिना उनके हाथ आदि का स्पर्श करने एवं उनके बीच में बोलने के लिए किया गया है। प्रस्तुत सूत्र में आचार्य आदि के साथ विहार करने के प्रसंग में जो साधु-साध्वी का उल्लेख किया है, वह सूत्र शैली के अनुसार किया गया है। परन्तु, साधु-साध्वी एक साथ विहार नहीं करते हैं, अतः आचार्य आदि के साथ साधुओं का ही विहार होता है, साध्वियों का नहीं। उनका विहार महत्तरा (प्रवर्तिनी) आदि के साथ होता है। साधु और साध्वी दोनों के नियमों में समानता होने के कारण दोनों का एक साथ उल्लेख कर दिया गया है। अतः जहां साधुओं का प्रसंग हो वहां आचार्य आदि का और जहां साध्वियों का प्रसंग हो वहां प्रवर्तिनी आदि का प्रसंग समझना चाहिए।