________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-3-1-6 (459) 285 यह श्रमण हमारी सेना का भेद लेने आया है। अतः इसे भुजाओं से पकड़कर खेंचो अर्थात् आगे-पीछे करो, और तदनुसार जब वह सैनिक साधु को पकड़ कर खेंचे, तब साधु को उस समय उस पर न प्रसन्न या न रुष्ट होना चाहिए, किन्तु निर्दोष मार्ग से उस साधु को समभाव एवं समाधि पूर्वक एक ग्राम से दूसरे ग्राम को विहार करने का प्रयत्न करना चहिए। IV टीका-अनुवाद : वह साधु जल-नदी तैरने के बाद किनारे पे आया हुआ, कादववाले पैरवाला हो, तब हरित-घास को तोड-तोड कर या कुब्ज करके या मूल से उखेडकर के या उन्मार्ग से हरित याने वनस्पति की विराधना हो ऐसा न चले... जैसे कि- साधु ऐसा सोचे कि- पैरकी इस मिट्टी को हरित याने घास साफ कर देगा... ऐसा करने से साधु माया (कषाय) के स्थान को सेवन करता है... किंतु साधु ऐसा माया-स्थान का सेवन न करें... शेष सूत्र सुगम है... वह साधु एक गांव से दुसरे गांव की और जा रहा हो, तब यदि मार्ग में वप्र याने किल्ला-गढ आदि देखें तब यदि अन्य मार्ग हो तो उस ऋजु मार्ग से न जावें... क्योंकि- वहां गर्ता-गडे आदि में गिर पडने से सचित्त ऐसे वृक्ष आदि का आलंबन लेना होता है... किंतु ऐसा करना साधु के लिये उचित नहि है... यदि विशेष कारण-प्रयोजन हो तो उसी ऋजु मार्ग से हि जावें... और कभी चलते चलते गिर पड़े तब गच्छगत याने स्थविर कल्पवाले साधु वल्लीवेलडी आदि का आलंबन लें अथवा कोइक मुसाफिर जा रहा हो तो हाथ का सहारा मांगकर संयम में रहते हुए हि मार्ग में चलें... तथा वह साधु यदि विहार मार्ग में देखे कि- गेहुं आदि धान्य या बैलगाडीओं का पडाव है तब वहां बहोत सारे अपाय याने उपद्रवों की संभावना होने से यदि दुसरा मार्ग हो तो वहां से न चलें... इत्यादि शेष सूत्र सुगम है... सूत्रसार: प्रस्तुत सूत्र में साधु को तीन बातों को ध्यान में रखने का आदेश दिया है- 1. नदी पार करके किनारे पर पहुंचने के बाद वह अपने पैरों में लगा हुआ कीचड़ हरित काय (हरी वनस्पति-घास आदि) से साफ न करे और न इस भावना से हरियाली पर चले कि इस पर चलने से मेरे पैर स्वतः ही साफ हो जाएंगे, 2. यदि अन्य मार्ग हो तो जिस मार्ग में खेत की क्यारियां, खड़े, कंदराएं-गुफाएं आदि पड़ती हों उस विषम मार्ग से भी न जाए, क्योंकि पैर फिसल जाने से वह गिर पड़ेगा और परिणाम स्वरूप शरीर में चोट आएगी या कभी बचाव के लिए वृक्ष आदि को पकड़ना पड़ेगा, इससे वनस्पति कायिक जीवों की हिंसा होगी और 3. जिस मार्ग पर सेना का पड़ाव हो या सैनिक घूम रहे हों तो अन्य मार्ग के होते हुए उस