________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-3-1-5 (458) 281 उदके यथार्यं गच्छेत्, अथ पुनः एवं जानीयात् पारगः स्यां उदकात् पारं प्राप्नोतुं, ततः संयतः एव उदकाइँण वा कायेन उदकतीरे तिष्ठेत् / सः भिक्षुः वा० उदकाई वा कार्य सस्निग्धं वा कायं, न आमृज्यात् वा न प्रमृज्यात् वा० अथ पुनः० विगतोदकः मम कायः, छिन्नस्नेहः मम कायः, तथाप्रकारं कायं आमृज्यात् वा यावत् प्रतापयेत् वा, ततः संयतः एव ग्रामानुग्रामं गच्छेत् // 458 // III सूत्रार्थ : साधु या साध्वी को व्यामानुयाम विहार करते हुए यदि मार्ग में जंघा प्रमाण जल पड़ता हो तो उसे पार करने के लिए साधु सिर से लेकर पैर तक की प्रतिलेखना करके एक पैर जल में और एक पैर स्थल में रखकर, जैसे भगवान ने ईर्यासमिति का वर्णन किया है उसके अनुसार उस पानी के प्रवाह को पार करना चाहिए। उस नदी में चलते समय मुनि को हाथों और पैरों का परस्पर स्पर्श नहीं करना चाहिए। और शारीरिक शान्ति के लिए या दाह उपशान्त करने के लिए गहरे और विस्तार वाले जल में भी प्रवेश नहीं करना चाहिए और उसे यह अनुभव होने लगे कि मैं उपधि अर्थात् उपकरणादि के साथ जल से पार नहीं हो सकता तो उपकरणादि को छोड़ दे, और यदि यह जाने कि मैं उपकरणादि के साथ पार हो सकता हूं तब उपकरण सहित पार हो जाए। परन्तु, पार पहुंचने के पश्चात् जब तक उसके शरीर से जल बिन्दु टपकते रहें और जब तक शरीर गीला रहे तब तक नदी के किनारे पर ही खड़ा रहे और तब तक अपने शरीर को हाथ से स्पर्श भी न करे यावत् आतापना भी न देवे। जब तक शरीर बिलकुल सूख न जाए अर्थात् उसको यह निश्चय हो जाए कि मेरा शरीर पूर्णतया सुख गया है, तब * शरीर की प्रमार्जना करके ईर्यासमिति पूर्वक यामानुयाम विचरने का प्रयत्न करे। IV टीका-अनुवाद : वह साधु या साध्वीजी म. एक गांव से दुसरे गांव की और जावे तब जाने कि- मार्ग में जानु (ढिंचण) प्रमाण जल वाली नदी आती है, तब नाभि से उपर का मस्तक पर्यंत का शरीर मुहपत्तीसे एवं नाभि से नीचे का पैर पर्यंत का शरीर रजोहरण (ओघा) से प्रमार्जन करके जल में प्रवेश करें... और जल में प्रवेश करके एक पैर जल में रखे और दुसरा पैर उपर आकाश में रखकर चलें किंतु जल को आलोडता हुआ न चलें... तथा जिस प्रकार सरलता होवे उस प्रकार चलें, किंतु बात-चित करता हुआ या विकार-चेष्टा करता हुआ न चलें... वह साधु आर्य पुरुषों की तरह व्यामानुग्राम जाता हुआ जब छाती प्रमाण उंडे (गहरे) जलवाले नदी या द्रह (सरोवर) आदि में प्रवेश करे तब भी पूर्व कही गइ विधि से हि जल में प्रवेश करे... तथा जल में प्रवेश करने के बाद यदि वस्त्रादि उपकरणों को उठाने में समर्थ