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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-3-1-8 (452) 263 मार्ग में अनेक दिनवाला मार्ग आता है, तब ऐसे अनेक दिनवाले मार्ग को जानकर यदि अच्छा मार्ग हो तो उस अनेक दिनवाले मार्ग से जाने का विचार न करें... इत्यादि... शेष सुगम है... अब नौका के द्वारा जाने की विधि कहतें हैं... V सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र में यह बताया गया है कि- मुनि को ऐसी अटवी में से होकर नहीं जाना चाहिए जिसे पार करने में लम्बा समय लगता हो। क्योंकि, इस लम्बे समय में वर्षा होने से द्वीन्द्रिय आदि क्षुद्र जन्तुओं एवं निगोदकाय तथा हरियाली आदि की उत्पत्ति हो जाने से संयम की विराधना होगी और कीचड़ आदि हो जाने के कारण यदि कभी पैर फिसल गया तो शरीर में चोट आने से आत्म विराधना भी होगी। और बहुत दूर तक जंगल होने के कारण रास्ते में विश्राम करने को स्थान की प्राप्ति एवं आहार पानी की प्राप्ति में भी कठिनता होगी। इसलिए मनि को सदा सरल एवं सहज ही समाप्त होने वाले यदि कभी विहार करते समय मार्ग में नदी पड़ जाए तो साधु को क्या करना चाहिए इसका उल्लेख सूत्रकार महर्षि .सुधर्म स्वामी आगे के सूत्र से करेंगे। I सूत्र // 8 // // 452 / / से भिक्खू वा० गामाणुगामं दूइज्जिज्जा0 अंतरा से नावासंतारिमे उदए सिया, से जं पुण नावं जाणिज्जा असंजए अ भिक्खुपडियाए किणिज्ज वा पामिच्चेज्ज वा नावाए वा नावं परिणाम कट्ट थलाओ वा नावं जलंसि ओगाहिज्जा, जलाओ वा नावं थलंसि उक्कसिज्जा पुण्णं वा नावं उस्सिंचिज्जा सण्णं वा नावं उप्पीलाविज्जा तहप्पगारं नावं उप्पीलाविज्जा तहप्पगारं नावं उड्ढगामिणि वा अहे गा० तिरियगामिल परं जोयणमेराए अद्ध जोयणमेराए अप्पतरे वा भुज्जतरे वा नो दूरुहिज्जा गमणाए। से भिक्खू वा० पुव्वामेव तिरिच्छसंपाइमं नावं जाणिज्जा, जाणित्ता से तमायाए एगंतमवक्कमिज्जा भंडगं पडिलेहिज्जा, एगओ भोयणभंडगं करिज्जा, ससीसोवरियं कायं पाए पमज्जिज्जा सागारं मत्तं पच्चक्खाइज्जा, एगं पायं जलें किच्चा एगं पायं थले किच्चा, तओ संजयमेव नावं दूरुहिज्जा // 452 // II संस्कृत-छाया : . स: भिक्षुः वा० ग्रामानुग्रामं गच्छन् अन्तरा तस्य नौ-संतार्यं उदकं स्यात्, सः यत् पुन: नावं जानीयात् असंयत: भिक्षुप्रतिज्ञया क्रीणीयात्, उच्छिन्ना वा गृह्णीयात्, नाव: वा नावं परिणामं कृत्वा, स्थलात् वा नावं जले अवगाहयेत्, जलात् वा नावं स्थले
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
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