________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-3-1-4 (448) 257 I सूत्र // 4 // // 448 // से भिक्खू वा० गामाणुगामं दूइज्जमाणे पुरओ जुगमायाए पेहमाणे दखूण तसे पाणे उद्धट्ट पादं रीइज्जा साहट्ट पायं रीइज्जा वितिरिच्छं वा कट्ठ पायं रीइज्जा, सइ परक्कमे संजयामेव परिक्कमिज्जा नो उज्जुयं गच्छिज्जा, तओ संजयामेव गामाणुगाम दुइज्जिज्जा। से भिक्खू वा० गामा० दूइज्जमाणे अंतरा से पाणाणि वा बी० हरि० उदए वा मट्टिआ वा अविद्धत्थे सइ परक्कमे जाव नो उज्जुयं गच्छिज्जा, तओ संजया० गामा० दूइज्जिज्ज || 448 // II संस्कृत-छाया : स: भिक्षुः वा० ग्रामानुग्रामं गच्छन् पुरतः युगमात्रया प्रेक्षमाण: दृष्ट्वा असान् प्राणिनः पादं उद्धृत्य गच्छेत्, संहृत्य पादं गच्छेत् तिरश्चीनं वा पादं कृत्वा गच्छेत्, सति पराक्रमे संयतः एक पराक्रमेत्, न ऋजुना गच्छेत्, ततः संयतः एव ग्रामानुग्रामं गच्छेत् / : सः भिक्षुः वा० ग्रामा० गच्छन् अन्तरा तस्य प्राणिनः वा बीजानि वा हरितानि वा उदकं वा मृत्तिका वा अविद्धार्थे सति पराक्रमे यावत् न ऋजुना गच्छेत्, तत: संयत:० ग्रामा० गच्छेत् // 448 // III सूत्रार्थ : साधु या साध्वी यामानुग्राम विहार करता हुआ अपने मुख के सामने साढे तीन हाथ प्रमाण भूमि को देखता हुआ चले और मार्ग में त्रस प्राणियों को देखकर पैर के अग्रभाग को उठाकर चले। यदि दोनों ओर जीव हों तो पैरों को संकोच कर या तिर्यक् टेढ़ा पैर रखकर चले। यह विधि अन्यमार्ग के अभाव में कही गई है। यदि अन्य मार्ग हो तो उस मार्ग से चलने का प्रयत्न करे, किन्तु जीव युक्त सरल (सीधे) मार्ग पर न चले। यदि मार्ग में प्राणी बीज, हरी, जल और मिट्टी आदि अचित न हुए हों तो साधु को अन्य मार्ग के होने पर उस मार्ग से नहीं जाना चाहिए। यदि अन्य मार्ग न हो तो उस मार्ग से यत्नापूर्वक जाना चाहिए। IV टीका-अनुवाद : वह साधु या साध्वीजी म. एक गांव से दुसरे गांव की और जाते हुए मार्ग में आगे की और युगमात्र याने चार हाथ प्रमाण अर्थात बैलगाडीकी धूसरी के प्रमाण भूमी को देखते हुए विहार करें... और वहां मार्ग में पतंगीये आदि स जीवों को देखकर पैर के आगे के पंजे के सहारे चले या पैर के पीछे के भाग पानी के सहारे चले या पैर को तीरछा करके