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________________ 256 2-1-3-1-3 (447) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन V सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र में वर्षाकाल समाप्त होने के बाद ठहरने के सम्बन्ध में उत्सर्ग एवं अपवाद मार्ग को सामने रखकर आदेश दिया गया है। इस में बताया गया है कि यदि वर्षाकाल के अन्तिम दिनों में वर्षा हो जाए और उसके कारण मार्ग हीरयाली से ढक जाए, जीवों की उत्पत्ति हो जाए और अन्य मत के भिक्षु भी अधिक संख्या में न आए हों तो वर्षाकाल के समाप्त होने पर भी मुनि हेमन्त काल के 15 दिन तक उस स्थान में ठहर सकता है, इससे स्पष्ट होता है कि- मुनि का जीवन जीव-रक्षा के लिए है। क्षुद्र जीवों की यत्ना के लिए ही वह चार महीने एक स्थान पर स्थित होता है। अतः उसके पश्चात् भी क्षुद्र जीवों की एवं वनस्पति की अधिक उत्पत्ति हो तो वह 15 दिन और रुक जाता है। प्रस्तुत सूत्र में इससे अधिक समय का उल्लेख नहीं किया गया है और प्रायः हेमन्त काल में मार्ग भी साफ हो जाता है। फिर भी यदि कभी अकस्मात् वर्षा की अधिकता से मार्ग हरियाली एवं क्षुद्र जन्तुओं की अधिक उत्पत्ति हो जाए और उस से संयम की विराधना होने की संभावना देखकर साधु कुछ दिन और ठहर जाता है, तो भी वह आज्ञा का उल्लंघन नहीं करता। क्योंकि वह केवल संयम की विशुद्ध आराधना के लिए ही ठहरता है। यदि वर्षाकाल के पश्चात् मौसम साफ हो, मार्ग में किसी तरह की रुकावट न हो तो साधु को मार्गशीर्ष कृष्णा प्रतिपदा को विहार कर देना चाहिए। आगम में स्पष्ट शब्दों में आदेश दिया गया है कि साधु-साध्वी को वर्षाकाल में विहार करना नहीं कल्पता परन्तु हेमन्त और व्यीष्म काल में विहार करना कल्पता है। आचारांग सूत्र में भी एक स्थल पर कहा है कि यदि साधु मास या वर्षावास कल्प के बाद बिना कारण उसी स्थान पर ठहरता है तो उसे कालातिक्रम दोष लगता है। और श्रमण भगवान महावीर ने भी कार्तिक चातुर्मासी (पूर्णिमा) के पश्चात् मार्गशीर्ष कृष्णा प्रतिपदा को विहार कर दिया था। इससे स्पष्ट होता है कि वर्षा आदि विशिष्ट कारणों के उपस्थित हुए बिना साधु को वर्षा काल के पश्चात् उसी स्थान पर नहीं ठहरना चाहिए। वृत्तिकार ने यह भी लिखा है कि यदि वृष्टि आदि न हो तो उत्सर्ग मार्ग में साधु को वर्षावास के समाप्त होने पर चातुर्मासी के तप का पारणा अन्य स्थान पर जाकर करना चाहिए। आगम में वर्षावास के पश्चात् बिना कारण रात को ठहरना नहीं कल्पता अर्थात् जिस स्थान में वर्षावास किया हो साधु को वहां मार्गशीर्ष कृष्णा की प्रतिपदाकी रात को नहीं ठहरना चाहिए। विहार के समय साधु को मार्ग की यत्ना कैसे करनी चाहिए इसका उल्लेख करते हुए सूत्रकार महर्षि सुधर्म स्वामी आगे का सूत्र कहतें हैं...
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
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