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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 249 %3 करना... अब श्रमण-साधु को किस प्रकार से भाव-ईर्या निर्दोष हो वह कहतें हैं... आलंबन याने प्रवचन के लिये, संघके लिये, गच्छ के लिये, आचार्यादि के लिये. तथा काल याने साधुओं को विहार करने योग्य समय... मार्ग-याने लोगों के आवागमन का मार्ग... यतना याने साढे तीन हाथ प्रमाण भूमी को देखते हुए यतना पूर्वक चलना... इस प्रकार आलंबन, काल, मार्ग एवं यतना के पदों से सोलह (16) भंग-विकल्प होतें हैं. काल मार्ग यतना काल मार्ग अयतना यतना लं काल काल अमार्ग अमार्ग ; अयतना अकाल मार्ग यतना अकाल अयतना अकाल मार्ग अमार्ग अमार्ग यतना / अकाल अयतना आलंबन आलंबन आलंबन आलंबन आलंबन आलंबन आलंबन आलंबन अनालंबन अनालंबन अनालंबन अनालंबन अनालंबन अनालंबन अनालंबन अनालंबन काल मार्ग यतना काल अयतना काल मार्ग अमार्ग अमार्ग यतना काल अयतना अकाल मार्ग यतना 13. 14. अकाल अयतना अकाल मार्ग अमार्ग अमार्ग यतना 16. अकाल . अयतना इत्यादि सोलह भंग-विकल्पों में से जो भंग परिशुद्ध है वह हि प्रशस्त-शुभ कहा गया है... चार कारणों से साधु का गमन (चलना) परिशुद्ध होता है... जैसे कि- आलंबन के द्वारा दिन में मार्ग में यतना से चलना-गमनागमन करना... अथवा अकाल में भी ग्लानादि आलंबन से मार्ग में यतना से चलनेवाले का गमनागमन शुद्ध है... इस प्रकार से मार्ग में साधु यतना से चले... नाम-निष्पन्न निक्षेप कहा, अब उद्देशार्थाधिकार के विषय में कहतें हैं... यहां तीसरे अध्ययन के तीनों उद्देशक में यद्यपि ईर्या-विशुद्धि का हि अर्थाधिकार है, फिर
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
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