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________________ 250 2-1-3-1-1 (445) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन भी प्रत्येक उद्देशक में जो कुछ विशेषता है वह अनुक्रम से कहतें हैं... पहले उद्देशक में-वर्षाकाल के पूर्व हि विवक्षित क्षेत्र में पहुंचना और चातुर्मास ठहरना, तथा चतुर्मास पूर्ण होने के बाद शरत्कालादि में विहार (निर्गमन) की विधि और मार्ग में यतना का स्वरूप कहा जाएगा... तथा दुसरे उद्देशक में- नदी उतरने के लिये नौका आदि में आरुढ हुए साधु को संभवित छलना-प्रक्षेपण इत्यादि कहा जाएगा... तथा जंघा प्रमाण जल में यतना की विधि एवं विभिन्न प्रकार के प्रश्न उपस्थित होने पर साधु को क्या करना चाहिये वह विस्तार से कहा जाएगा... तथा तीसरे उद्देशक में- यदि कोइ मनुष्य नदी के जल आदि के विषयक पुछे तब साधु जानता हुआ भी उसको न कहें इत्यादि अधिकार कहा जाएगा... तथा मार्ग में चोर-लुंट-धाड का उपद्रव न हो वैसा पहले से हि प्रतिबंध करें... कभी मार्ग में कोइ लुट ले तब स्वजन या राजगृह की और न जाएं एवं उन्हें वह बात न कहें... अब सूत्रानुगम में अस्खलितादि गुण सहित सूत्र का उच्चारण करें... वह सूत्र यह हैं... I सूत्र // 1 // // 445 // ___ अब्भुवगए खलु वासावासे अभिपवुढे बहवे पाणा अभिसंभूया बहवे बीया अहणाभिण्णा अंतरा से मग्गा बहुपाणा बहुबीया जाव ससंताणगा अणभिक्कंता पंथा नो विण्णाया मग्गा सेवं णच्चा नो गामाणुगामं दूइज्जिज्जा, तओ संजयामेव वासावासं उवल्लिइज्जा // 445 // II संस्कृत-छाया : अभ्युपगते खलु वर्षावासे अभिप्रवृष्टे बहवः प्राणिनः अभिसम्भूता: बहूनि बीजानि अभिनवाङ्कुरितानि अन्तराले तस्य मार्गाः बहुप्राणिनः बहबीजा: यावत् ससन्तानका: अनभिक्रान्ताः पन्थानः, न विज्ञाता: मार्गाः, सः एवं ज्ञात्वा न ग्रामानुग्रामं गच्छेत् (यायात्) ततः संयतः एव वर्षावासं उपलीयेत.॥ 445 // III सूत्रार्थ : ___वर्षाकाल में वर्षा होजाने से मार्ग में बहुत से प्राणी-जीवजंतु उत्पन्न हो जाते हैं तथा बीज अंकुरित हो जाते हैं, पृथिवी घास आदि से हरी हो जाती है। मार्ग में बहुत से प्राणीक्षुद्रजंतु बहुत से बीज तथा जाले आदि की उत्पत्ति हो जाती है, एवं वर्षा के कारण मार्ग अवरुद्ध हो जाने से मार्ग और उन्मार्ग का पता नहीं लगता। ऐसी परिस्थिति में साधु को एक ग्राम
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
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