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________________ 240 2-1-2-3-20 (440) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन %3 II संस्कृत-छाया : स: भिक्षुः वा सन् वा वसन् वा ग्रामानुग्राम गच्छन् वा पूर्वमेव प्रज्ञस्य उच्चारप्रस्त्रवणभूमी प्रत्युपेक्षेत, के वली ब्रूयात्-आदानमेतत्, अप्रतिलेखितायां उच्चारप्रस्त्रवणभूमौ, सः भिक्षुः वा० रात्रौ वा विकाले वा उच्चारप्रस्त्रवणं त्यजन् प्रचलेत् वा प्रपतेत् वा, सः तत्र प्रचलन् वा प्रपतन् वा हस्तौ वा पादौ वा यावत् लूषयेत्, प्राणिन: वा, व्यपरोपयेत्, अथ भिक्षूणां पूर्वोपदिष्टं० यत् पूर्वमेव प्रज्ञस्य उच्चार० भूमी प्रतिलेखयेत् // प्रत्युपेक्षेत // 440 // III सूत्रार्थ : जो साधु या साध्वी जंघादि बल से क्षीण होने के कारण एक स्थान में स्थित हो, या उपाश्रय में मास कल्पादि से रहता हो या व्यामानुयाम विहार करता हुआ उपाश्रय में आकर रहे तो उस बुद्धिमान साधु को चाहिए कि- वह जिस स्थान में ठहरे, वहां पर पहले मल-मूत्र का त्याग करने की भूमि को अच्छी तरह से देख ले। क्योंकि- भगवान ने बिना देखी भूमि को कर्म बन्धन का कारण कहा है। बिना देखी हुई भूमि में कोई भी साधु या साध्वी रात्रि में अथवा विकाल में मल-मूत्रादि को परठता हुआ यदि कभी पैर फिसलने से गिर पड़े तो उसके फिसलने या गिरने से उसके हाथ पैर या शरीर के किसी अवयव को आघात पहुंचेगा या उसके गिरने से वहां स्थित अन्य किसी क्षुद्र जीव का विनाश हो जाएगा। यह सब कुछ संभव है, इसलिए तीर्थंकरादि आप्त पुरुषों ने पहले ही भिक्षुओं को यह आदेश दिया है कि- साधु को उपाश्रय में निवास करने से पहले वहां मल-मूत्र त्यागने की भूमि की अवश्य ही प्रतिलेखना कर लेनी चाहिए। IV टीका-अनुवाद : सुगम है, किंतु साधुओं की यह सामाचारी (आचार-मर्यादा) है कि- विकाल याने संध्या समय प्रस्त्रवण याने लघुनीति-मात्रा की भूमी का पडिलेहण करें... अब संस्तारक-भूमी के विषय में कहतें हैं... V सूत्रसार: इस सूत्र में साधु को यह आदेश दिया गया है कि- जिस मकान में स्थानापति करना चाहे या मास एवं वर्षावास कल्प के लिए ठहरे या विहार करते हुए कुछ समय के लिए ठहरे, तो उसे उस मकान में मल-मूत्र त्याग करने की भूमि अवश्य देख लेनी चाहिए। क्योंकि, यदि वह दिन में उक्त भूमि की प्रतिलेखना नहीं करेगा तो सम्भव है कि रात्रि के समय भूमि की
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
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