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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-2-2-8 (413) 199 दु (ति) गुणेण वा अपरिहरित्ता तत्थेव भुज्जो० अयमाउसो ! अवठ्ठाणकि० // 2 // // 413 // II संस्कृत-छाया : सः आगन्तागारेषु वा ये भगवन्तः ऋतु० वर्षा० कल्पं उपनीय तं द्विगुणत्रिगुणादिना वा अपरिहत्य तत्रैव भूय:० अयं आयुष्मन् ! उपस्थान क्रियादोषदुष्टो भवति // 2 // // 413 // III सूत्रार्थ : हे आयुष्यमन् (शिष्य) ! जो साधु साध्वी धर्मशाला आदि स्थानों में, शेषकाल में मासकल्प आदि और वर्षा काल में चातुमार्सकल्प को बिताकर अन्य स्थानों में द्विगुण या त्रिगुण काल को न बिताकर जल्दी ही फिर उन्हीं स्थानों पर निवास करते हैं, तो उन्हें उपस्थान क्रिया लगती है। . IV टीका-अनुवाद : . आगंतागारादि घरों में जो साधु भगवंत ऋतुबद्ध मासकल्प या वर्षावास रहकर अन्य अन्य जगह एक एक मासकल्प करके यदि दो या तीन महिने का अंतर रखे बिना पुनः वहां हि आकर रहतें हो, तब इस प्रकार का वह उपाश्रय उपस्थान क्रिया नाम के दोष से दूषित होता है, अतः वहां साधुओं को रहना कल्पता नहि है... || 2 || || 413 || . अब अभिक्रांत वसति का स्वरुप कहतें हैं... सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि- साधु-साध्वी ने जिस स्थान में मास कल्प या वर्षावासकल्प किया है, उससे दुगुना या तिगना काल व्यतीत किए बिना उक्त स्थान में फिर से मास या वर्षावास कल्प नहीं करना चाहिए। यदि कोई साधु-साध्वी अन्य क्षेत्र में मर्यादित काल बिताने से पहले पुनः उस क्षेत्र में आकर मास या वर्षावास कल्प करते हैं तो उन्हें उपस्थान क्रिया लगती है। इससे स्पष्ट है कि जिस स्थान में एक महीना ठहरें हों उस स्थान पर दो या तीन महीने अन्य क्षेत्रों में लगाए बिना मास कल्प करना नहीं कल्पता। इसी तरह जहां चातुर्मास किया है उस क्षेत्र में दो या तीन वर्षावास अन्य क्षेत्रों में किए बिना पुनः वर्षावास करना नहीं कल्पता। इस प्रतिबन्ध का कारण यह है कि नए-नए क्षेत्रों में घूमते रहने से साधु का संयम भी शुद्ध रहता है और अनेक क्षेत्रों को उनके उपदेश का लाभ भी मिलता है। और अनेक प्राणियों को आत्म विकास करने का अवसर मिलता है। मुनियों का आवागमन कम
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
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