________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका ___2-1-2-2-4 (409) 193 - इस विषय को और स्पष्ट करते हुए सूत्रकार महर्षि सुधर्म स्वामी आगे का सूत्र कहतें हैं.. I सूत्र // 4 // // 409 // से भिक्खू वा० उच्चारपासवणेण उब्बाहिज्जमाणे राओ वा वियाले वा गाहावडकुलस्स दुवारबाहं अवंगुणिज्जा, तेणे य तस्संधिचारी अणुपविसिज्जा, तस्स भिक्खुस्स नो कप्पड़ एवं वइत्तए- अयं तेणो पविसइ वा नो पविसइ, उवल्लियड वा नो वा० आवयइ वा नो वा० वयइ वा नो वा० तेणहडं अण्णेण हडं, तस्स हडं अण्णस्स हडं, अयं तेणे, अयं उवचरए, अयं हंता अयं इत्थमकासी, तं तवस्सिं भिक्खू अतेणं तेणंति संकडू, अह भिक्खूणं पुव्वो० जाव नो ठा० // 409 // II संस्कृत-छाया : सः भिक्षुः वा० उच्चारप्रसवणेन उद्बाध्यमानः रात्रौ वा विकाले वा गृहपतिकुलस्य द्वारभागं उद्घाटयेत्, स्तेनश्च तत्सन्धिचारी अनुप्रवियेत् / तस्य शिक्षोः न खलु कल्पते एवं वक्तुं-अयं स्तेनः प्रविशति वा, नो वा प्रविशति, उपलीयते वा, न वा उपलीयते, आपतति वा, न वा आपतति, (व्रजति वा, न वा व्रजति) वदति वा न वा वदति तेन हृतं, अन्येन हृतं, तस्य हृतं अन्यस्य हृतं, अयं स्तेन: अयं उपचरकः अयं हन्ता, अयं इत्थं अकार्षीत्, तं तपस्विनं भिv अस्तेनं स्तेनं इति शङ्कते, अथ भिक्षुणां पूर्वोपदिष्टां० यावत् न स्थानं० // 409 / / III सूत्रार्थ : रात्रि में अथवा विकाल में साधु ने मल-सूत्रादि की बाधा होने पर गृहस्थ के घर का द्वार खोला और उसी समय कोई चोर या उसका साथी घर में प्रविष्ट हो गया तो उस समय साधु तो मौन रहेगा। वह हल्ला नहीं मचाएगा, कि यह चोर घरमें घुसता है, अथवा नहीं घुसता है. छिपता है. अथवा नहीं छिपता है. नीचे कढ़ता है अथवा नहीं कदता है. बोलता है अथवा नहीं बोलता है, उसने चुराया है, अथवा अन्य ने चुराया है, उसका धन चुराया है, अथवा अन्य का धन चुराया है, यह चोर है, यह उसका उपचारक है, यह मारने वाला है, और इस चोर ने यहां यह कार्य किया है। अतः साधु के कुछ नहीं कहने पर गृहस्थ को उस तपस्वी साधु ने का सन्देह हो जाएगा। इसलिए भगवान ने गृहस्थ से युक्त मकान में ठहरने एवं कायोत्सर्ग का निषेध किया हैं।