________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-1-10-2 (391) 145 वह साधु उस आहारादि पिंड को लेकर, जहां आचार्यादि है वहां जावे, और जाकर जो आहारादि जैसा है वैसा हि दिखलावे, थोडा भी छुपावे नहि... अब आहारार्थ घुमनेवाले साधु को मातृस्थान का प्रतिषेध करतें हैं... कि- वह कोइ एक साधु अच्छे वणर्वादिवाले अन्य कोइ आहारादि को ग्रहण करके, रस में आसक्त होने के कारण से घूमता हुआ हि अच्छे अच्छे आहारादि को वापरकर, जो कुछ अंत प्रांत विवर्ण आहारादि बचा हो वह उपाश्रय में लाता है, इस प्रकार वह साधु माया-स्थान का स्पर्श करत है, परंतु साधु को ऐसा नहि करना चाहिये... V सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र में साधु जीवन की सरलता एवं स्पष्टता का दिग्दर्शन कराया गया है। इसमें बताया गया है कि साधु को अपने स्वादेन्द्रिय का परिपोषण करने के लिए सरस आहारादि को न तो नीरस आहार से छुपाकर रखना चाहिए और न उसे गृहस्थ के घर में या मार्ग में ही उदरस्थ कर लेना चाहिए। साधु को चाहिए कि उसे गृहस्थ के घरों से जो भी आहार उपलब्ध हुआ है, उसमें किसी तरह की आसक्ति नहीं रखते हुए अपने अपने स्थान पर ले आए और आहार के पात्र को अपने हाथ में ऊपर उठाकर आचार्य आदि से निवेदन करे कि मुझे भिक्षा में ये पदार्थ प्राप्त हुए हैं। परन्तु, उसे उसमें से थोड़ा सा भी छुपाना नहीं चाहिए। आगम में यह भी कहा गया है कि जो साधु प्राप्त पदार्थों का सबसे समान भाग नहीं देता है तो वह मुक्ति नहीं पा सकता। अतः साधु को चाहिए कि वह बिना किसी संकोच एवं बिना किसी तरह की स्वादलोलुपता को रखते हुए सब सांभोगिक साधुओं में सम विभाजन करके आहार करे। परन्तु, ऐसा न करे कि अच्छे-अच्छे पदार्थ स्वयं खा ले और बचे-खुचे पदार्थ अन्य साधुओं को देवे। __ प्रस्तुत सूत्र में प्रयुक्त 'मणुन्न' और 'पंतेण' पदों से सामूहिक संघारक आहार की परम्परा सिद्ध होती है। क्योंकि विविध प्रकार के सरस आहार की प्राप्ति अनेक घरों से ही हो सकती है। और अनेक घरों में कई साधुओं के लिए ही घूमा जाता है। केवल एक साधु के लिए पांच-दश घर ही पर्याप्त होते हैं। इस तरह इस सूत्र से सामूहिक संघारक गोचरी का स्पष्ट निर्देशन मिला है। ___ इस सूत्र में यह भी बताया गया है कि साधु को सदा सरल एवं स्पष्ट भाव रखना चाहिए। उसे अपने स्वाद एवं स्वार्थ के लिए किसी भी वस्तु को छुपाकर नहीं रखना चाहिए और गुरु एवं आचार्य आदि के सामने सभी पदार्थ इस तरह रखने चाहिए कि वे आसानी से सभी पदार्थों को देख सके। न तो उन्हें देखने में कोई कष्ट हो और न कोई पदार्थ उनकी दृष्टि से ओझल रह सके। इस सूत्र से विशेष कारण होने पर गृहस्थ के घर में आहार करने की ध्वनि भी