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________________ 142 2-1-1-10-1(390) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन परन्तु, उसे यह करना चाहिए कि उपलब्ध आहार को लेकर जहां अपने गुरुजनादि हों जैसे कि-आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक स्थविर, गणी, गणधर और गणावच्छेदक आदि, वहां जाए और उनसे प्रार्थना करे कि हे गुरुदेव ! मेरे पूर्व और पश्चात् परिचय वाले दोनों ही भिक्षु यहां उपस्थित है यदि आपकी आज्ञा हो तो मैं इन उपस्थित सभी साधुओं को आहार दे दूं ? उस भिक्षु के ऐसा कहने पर आचार्य कहें कि-आयुष्मन् श्रमण ! जिस साधु की जैसी इच्छा हो, उसी के अनुसार उसे पर्याप्त आहार दे दो। आचार्य की आज्ञानुसार सबको यथोचित बांट कर दे देवे। यदि आचार्य कहें कि जो कुछ लाए हो, सभी दे दो, तो बिना किसी संकोच के सभी आहार उन्हें दे दे। IV टीका-अनुवाद : वह कोइ एक साधु सामान्य से सभी साधुओं के लिये प्राप्त उन आहारादि को लेकर, उन साधर्मिक-साधुओं के बिना पुछे हि जिस जिस साधु को जो कुछ चाहिये वह, अपने हि मन से बहोत सारा देता है, तब वह साधु माया-स्थान को स्पर्श करता है, अतः साधु को ऐसा नहि करना चाहिये... असाधारण आहारादि की प्राप्ति में भी साधु को जो करना चाहिये वह अब कहतें हैं कि- वह साधु एषणीय एवं वेषमात्र से प्राप्त उस आहारादि को लेकर के वहां आचार्य आदि के पास जावे, तथा जाकर ऐसा कहे कि- हे आयुष्मन् श्रमण ! मेरे पूर्वसंस्तुत याने दीक्षा देनेवाले या पश्चात्संस्तुत याने जिन्हों के पास श्रुतज्ञान प्राप्त कीये है, वे या उनके संबंधित कि- जो अन्य जगह रहे हुए हैं... वे इस प्रकार... 1. अनुयोगधारक आचार्य म. या 2. अध्ययन करानेवाले उपाध्याय म. या 3. साधुओं को अपनी अपनी योग्यता अनुसार वैयावृत्य आदि प्रवृत्तिओं मे जोडनेवाले प्रवर्तक, या 4. संयमादि में खेद पानेवाले साधुओं को संयम में स्थिर करनेवाले स्थविर, या 5. गच्छ के नायक गणी, या 6. आचार्य नहि किंतु आचार्य के समान कि- जो गुरु के आदेश से साधुओं को लेकर अलग विचरतें हैं वे गणधर, या 7. गच्छके कार्यो को संभालनेवाले गणावच्छेदक, इत्यादि उनके लिये, ऐसा कहे कि- आपकी अनुमति से मैं इन आचार्य आदि को बहोत सारा आहारादि दूं... इस प्रकार विनंति करने पर, वे साधुजन कहे कि- वे आपके आचार्यादि जितना चाहे उतना उन्हे दे दीजीये... और यदि सभी आहारादि की अनुमति हो तो, सब आहारादि उन आचार्यादि को साधु दे दे... V सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि- यदि कोई मुनि अपने सांभोगिक साधुओं का आहार लेकर आया है, तो उसे पहले आचार्य आदि की आज्ञा लेनी चाहिए कि मैं यह आहार लाया हूं, आपकी आज्ञा हो तो सभी साधुओं में विभक्त कर दूं। उसके प्रार्थना करने पर आचार्य
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
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